राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और भारतीय जनता पार्टी के बीच गहरे सम्बन्ध कोई छुपी हुई बात नहीं हैं लेकिन ऐसे मौके कम ही आए हैं जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत सार्वजनिक तौर पर एक साथ या एक ही मंच पर नज़र आए हों.

ऐसा एक मौका साल 2020 में तब आया था जब अयोध्या में राम मंदिर के भूमि पूजन पर दोनों साथ दिखे थे.

सोमवार को राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के दौरान फिर एक बार मोदी और भागवत एक साथ नज़र आए.

राम मंदिर के गर्भ गृह में भागवत मोदी के साथ पहले पूजा अर्चना करते दिखे और बाद में मंच से भाषण देते हुए भी.

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अपने भाषण में भागवत ने प्रधानमंत्री की तारीफ़ में कोई कमी नहीं रखी. उन्होंने कहा, “इस प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव में पधारने से पहले प्रधानमंत्री जी ने कठोर व्रत रखा. जितना कठोर व्रत रखने को कहा था उससे कई गुना अधिक कठोर व्रताचरण उन्होंने किया. मेरा उनसे पुराना परिचय है और मैं जानता हूँ, वो तपस्वी हैं ही.”

आरएसएस बीजेपी का अभिभावक संगठन है तो ये स्वाभाविक है कि उसका बीजेपी पर प्रभाव तो रहेगा ही, साथ ही, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संघ के सक्रिय प्रचारक भी रहे हैं.

लेकिन पिछले कुछ सालों से जो लगातार चर्चा का विषय रहा है वो ये है कि क्या बीजेपी हमेशा आरएसएस के नियंत्रण में ही काम करती है? अगर नहीं तो आरएसएस का बीजेपी पर नियंत्रण किस हद तक है.

राम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह में जहां धर्म और राजनीति के बीच की रेखाएं धुंधली होती दिखीं, वहीं भागवत की मौजूदगी ने भी एक सवाल पैदा किया: क्या बीजेपी और आरएसएस के रिश्तों में बदलाव आ रहा है?

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