प्रकाशनार्थ
आज लोक शिक्षण अभियान ट्रस्ट द्वारा ज्ञानपीठ केन्द्र के प्रांगण में संस्कृत साहित्य के मूर्धन्य विद्वान, शिक्षाविद, धार्मिक पाखंड, अंधविश्वास, रूढ़िवाद, भ्रम के घोर विरोधी ड़ा0 सभापति शास्त्री, पूर्व विभागाध्यक्ष लाजपत राय महाविद्यालय का ‘’स्मृति दिवस’’ कार्यक्रम आयोजित किया गया, कार्यक्रम की अध्यक्षता डा0 विशन लाल गौड़ ने की, मुख्य अतिथि श्याम नारायण, अध्यक्ष डा0 अंबेदकर जन कल्याण परिषद उत्तर प्रदेश रहे, संस्था के संस्थापक / अध्यक्ष राम दुलार यादव समाजवादी चिंतक मुख्य वक्ता के रूप में कार्यक्रम में भाग लिया| संचालन श्रमिक नेता अनिल मिश्र ने, आयोजन इंजी0 धीरेन्द्र यादव ने किया| सैकड़ों ज्ञानपीठ के साथियों, विद्वानों, अतिथियों ने डा0 सभापति शास्त्री के चित्र पर पुष्प अर्पित कर भाव भीनी श्रद्धांजलि दी, उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर वक्ताओं ने प्रकाश डाला, राम प्यारे यादव, हरिशंकर वर्मा, सरदार जगतार सिंह भट्टी, श्याम नारायण जी ने कार्यक्रम को संबोधित किया, राजेन्द्र सिंह, हुकुम सिंह, पंडित विनोद त्रिपाठी, राम कुमार मिश्र ने भजन, गीत के माध्यम से शब्दांजली दी| शांति पाठ और जयकारे के उद्घोष से आकाश गूंज उठा, सुरेन्द्र चंदेल और साथियों ने सभी को नव वर्ष की बधाई दी, तथा सूक्ष्म आहार का आनंद लिया|
स्मृति दिवस समारोह को संबोधित करते हुए शिक्षाविद राम दुलार यादव ने कहा कि डा0 सभापति शास्त्री निर्भीकता पूर्वक अपनी बात कहते थे, वे रूढ़िवाद, कुरीतियों, अंधविश्वास, अंधभक्ति और अंध श्रद्धा तथा भ्रम का लगातार खंडन और विरोध करते रहे, वह मृदुभाषी रहे और समाज में सद्भाव, भाईचारा, प्रेम और सहयोग की भावना फैले, ज्ञानपीठ केन्द्र में अपने वक्तव्य के माध्यम से लोगों में ज्ञान का संचार करते रहे, ज्ञानपीठ को उनकी कमी हमेशा स्मरणीय रहेगी, ज्ञानपीठ केन्द्र के सभी साथी उनके प्रेरणा दायक विचारों पर अनवरत अनुशरण करते रहेंगे, तथा जन-जन में देश की एकता, अखंडता के लिए कार्य करते रहेंगे| डा0 सभापति शास्त्री ने शिक्षा के क्षेत्र में भी अनुकरणीय कार्य किया, अनेकों शोधार्थी छात्रों ने उनके सानिध्य में डा0 की उपाधि अर्जित की, वह लोगों पढ़ने में आर्थिक मदद भी करते थे, उनके द्वारा किये गये कार्यों को ज्ञानपीठ बढ़ाने का कार्य करेगी, उनके बारे में संत कबीर की वाणी अक्षरशः सही बैठती है, कि

“मेरो मन निर्मल भयो, जैसे गंगा नीर |
खोजत, खोजत हरि फिरै, क़हत कबीर, कबीर’’ ||
और कहा कि
“लालन की नहि बोरियां, हंसन की नई पांत |
सिंहन के नहि लेहड़े, साधु न चलत जमात’’ ||
डा0 शास्त्री अपने आप में अकेले शास्त्र थे, हम उनके चरणों में नमन करते है|
डा0 विशन लाल गौड़ उनके गुरु और भाई तथा मित्र रहे, कहा कि” हमे भारतीय संस्कृति, सभ्यता का ज्ञान यहाँ के महापुरुषों के व्यक्तित्व और कृतित्व से लेना चाहिए, तथा जो हमारे आराध्य है उनके साहसिक कार्यों की प्रसंशा करनी चाहिए नहीं तो लम्पट और बेईमानों के पाले में गेंद चली जायेगी, हम डा0 सभापति शास्त्री को मित्र और छोटे भाई का जो प्यार रहा है उसे स्मरण करते हुए श्रद्धांजलि देते है|
कार्यक्रम में डा0 देवकर्ण चौहान, एस0एन0 अवस्थी, पी0के0 मिश्र, राम दुलार यादव, डा0 विशन लाल गौड़, रेनुपुरी, संजू शर्मा, अनीता सिंह, प्रदीप पुरी, राजेन्द्र सिंह, मुनीव यादव, ओम प्रकाश अरोड़ा, वीर सिंह सैन, हंसराज यादव, राम प्यारे यादव, सुनील, जय प्रकाश, हरीश ठाकुर, अमरकांत राय, हरिशंकर वर्मा, मोहम्म्द अली, हुकुम सिंह, सत्यपाल, संतराज, बी0पी0 यादव, कैलाश चंद्र, धर्मेन्द्र, कृष्णानन्द, पंडित विनोद त्रिपाठी, तेज बहादुर, रामेश्वर यादव, ब्रह्म प्रकाश, राज कुमार गौतम, अखिलेश शुक्ल, अमृतलाल चौरसिया, विनोद यादव, स्वामी नाथ, सुदर्शन, पी0एस0 वर्मा, हरेन्द्र, सुरेन्द्र सिंह चंदेल, श्याम नारायण, राज कुमार सिंह, सुभाष, अमर बहादुर, हरीकृष्ण आदि सैकड़ों साथियों ने श्रद्धा सुमन अर्पित किया|

भवदीय
हरिशंकर यादव
(कार्यालय मंत्री)

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