नई दिल्ली।  ये एक क्लासिक केस है, हम इसे हल्के में नहीं ले सकते। सुप्रीम कोर्ट ने ये बात महाराष्ट्र के एक गांव में महिला सरपंच को हटाने के आदेश को खारिज करते हुए कही।

कोर्ट ने कहा कि निर्वाचित जनप्रतिनिधि को हटाने को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए, खासकर तब जब मामला ग्रामीण इलाकों की महिलाओं का हो।

महिला सरपंच को स्वीकार नहीं कर पा रहे थे लोग

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने इस मामले को एक क्लासिक केस बताया, जहां गांव के निवासी इस तथ्य को स्वीकार नहीं कर पा रहे थे कि एक महिला सरपंच के पद पर चुनी गई है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि यह एक ऐसा मामला था, जहां ग्रामीण इस वास्तविकता को स्वीकार करने में असमर्थ थे कि एक महिला सरपंच उनकी ओर से निर्णय लेगी और उन्हें उसके निर्देशों का पालन करना होगा।

कोर्ट बोला- फिर लैंगिक समानता कैसे होगी

पीठ ने 27 सितंबर के अपने आदेश में कहा कि यह परिदृश्य तब और भी गंभीर हो जाता है जब हम एक देश के रूप में सार्वजनिक कार्यालयों और सबसे महत्वपूर्ण रूप से निर्वाचित निकायों में पर्याप्त महिला प्रतिनिधियों सहित सभी क्षेत्रों में लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण के प्रगतिशील लक्ष्य को साकार करने का प्रयास कर रहे हैं।

इस बात पर जोर देते हुए कि यह स्वीकार किया जाना चाहिए कि ये महिलाएं, जो ऐसे सार्वजनिक कार्यालयों में बड़े स्तर पर काम करने में सफल होती हैं, वे काफी संघर्ष के बाद ही ऐसा करती हैं। पीठ ने कहा, “हम बस इतना ही दोहराना चाहेंगे कि निर्वाचित जनप्रतिनिधि को हटाने के मामले को इतना हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए, खासकर जब यह ग्रामीण क्षेत्रों से संबंधित महिलाओं से संबंधित हो।”

यह है पूरा मामला

पीठ महाराष्ट्र के जलगांव जिले में स्थित विचखेड़ा ग्राम पंचायत के निर्वाचित सरपंच मनीष रवींद्र पानपाटिल की याचिका पर विचार कर रही थी। साथी ग्रामीणों द्वारा शिकायत किए जाने के बाद उन्हें उनके पद से हटाने का आदेश दिया गया था कि वह कथित तौर पर सरकारी जमीन पर बने घर में अपनी सास के साथ रह रही थीं। इस आरोप का पानपाटिल ने खंडन किया, जिन्होंने दावा किया कि वह उस विशेष आवास में नहीं रहती हैं, तथा वह अपने पति और बच्चों के साथ किराए के आवास में अलग रहती हैं।

हालांकि, इन तथ्यों की उचित रूप से पुष्टि किए बिना तथा “बेबुनियाद बयानों” के आधार पर संबंधित कलेक्टर ने उन्हें सरपंच के रूप में बने रहने से अयोग्य ठहराते हुए आदेश पारित कर दिया।

पीठ ने क्या कहा?

पीठ ने कहा, “इसके बाद इस आदेश की संभागीय आयुक्त ने पुष्टि की। तत्पश्चात, उच्च न्यायालय ने विवादित आदेश के तहत आयुक्त के आदेश के विरुद्ध अपीलकर्ता की रिट याचिका को तकनीकी आधार पर खारिज कर दिया, इस प्रकार उनके पद से हटाए जाने पर स्वीकृति की मुहर लगा दी।”

कोर्ट ने आगे कहा कि ग्रामीणों ने पानपाटिल को उनके पद से हटाने के लिए तिनके का सहारा लिया और इसमें यह भी कहा जा सकता है कि विभिन्न स्तरों पर सरकारी अधिकारियों द्वारा पारित संक्षिप्त आदेशों से उनके उद्देश्य को सहायता मिली।

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