काशी में दो सौ वर्षों में पहली बार शुक्ल यजुर्वेद की माध्यंदिनी शाखा का संपूर्ण एकाकी कंठस्थ दंडक्रम पारायण पूरा हुआ। वेदपाठ की आठ विधाओं में सबसे कठिन माने जाने वाले दंडक्रम पारायण को युवा वेदमूर्ति देवव्रत महेश रेखे घनपाठी ने 50 दिन में पूरा किया। प्रधानमत्री नरेंद्र मोदी ने देवव्रत की इस उपलब्धि को जहां सराहा और वहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मंगलवार को नमो घाट पर आयोजित काशी तमिल संगमम के मंच पर देवव्रत का सम्मान किया। पीएम मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर लिखा कि 19 साल के वेदमूर्ति देवव्रत महेश रेखे ने जो किया है, उसे आने वाली पीढ़ियां याद रखेंगी।
दंडक्रम पारायण शुक्ल यजुर्वेद की माध्यन्दिन शाखा के लगभग 2000 मंत्रों का विशेष पाठ है। इसमें मंत्रों को सटीक स्वर, उच्चारण और शुद्धता के साथ आगे-पीछे कंठस्थ कर सुनाना होता है। यह वेद पाठ के 8 प्रकारों में सबसे कठिन है। 19 वर्षीय देवव्रत महेश रेखे ने इसे 50 दिनों में पूरा कर इतिहास रचा है। यह 200 साल बाद दूसरी बार हुआ है। 200 साल पहले नासिक में वेदमूर्ति नारायण शास्त्री देव ने दंडक्रम का पारायण किया था।
महाराष्ट्र के अहिल्या नगर के निवासी वेदब्रह्मश्री महेश चंद्रकांत रेखे के पुत्र वेदमूर्ति देवव्रत महेश रेखे 19 वर्ष के हैं। वह काशी के रामघाट स्थित सांगवेद विद्यालय में अध्ययनरत हैं। 29 नवंबर को दंडक्रम पारायण की पूर्णाहुति के बाद उन्हें शृंगेरी शंकराचार्य ने सम्मान स्वरूप सोने का कंगन और 1,01,116 रुपये प्रदान किए।
वाराणसी के रामघाट स्थित वल्लभराम शालिग्राम सांगवेद विद्यालय के वेदमूर्ति देवव्रत महेश रेखे ने कठोर अभ्यास और समर्पण से इसे पूरा किया। 12 अक्तूबर से शुरू हुआ उनका यह तप 29 नवंबर को पूरा हुआ। दंडक्रम पारायणकर्ता अभिनंदन समिति के पदाधिकारियों चल्ला अन्नपूर्णा प्रसाद, चल्ला सुब्बाराव, अनिल किंजवडेकर, चंद्रशेखर द्रविड़ घनपाठी, प्रो. माधव जर्नादन रटाटे एवं पांडुरंग पुराणिक ने बताया कि नित्य साढ़े तीन से चार घंटे पाठ कर देवव्रत ने इसे पूरा किया।
भारतीय संस्कृति में आस्था रखने वाले हर एक व्यक्ति को ये जानकर अच्छा लगेगा कि श्री देवव्रत ने शुक्ल यजुर्वेद की माध्यन्दिन शाखा के 2000 मंत्रों वाले ‘दण्डकर्म पारायणम्’ को 50 दिनों तक बिना किसी अवरोध के पूर्ण किया है। इसमें अनेक वैदिक ऋचाएं और पवित्रतम शब्द उल्लेखित हैं, जिन्हें उन्होंने पूर्ण शुद्धता के साथ उच्चारित किया। ये उपलब्धि हमारी गुरु परंपरा का सबसे उत्तम रूप है।
काशी से सांसद के रूप में, मुझे इस बात का गर्व है कि उनकी यह अद्भुत साधना इसी पवित्र धरती पर संपन्न हुई। उनके परिवार, संतों, मुनियों, विद्वानों और देशभर की उन सभी संस्थाओं को मेरा प्रणाम, जिन्होंने इस तपस्या में उन्हें सहयोग दिया।
