• महाकुंभ 2025 के समापन के बाद भी संगम तट पर अपनों की तलाश जारी है। कई लोग अपने बिछड़े परिजनों की तलाश में खोया-पाया केंद्र के चक्कर लगा रहे हैं, तो कुछ परिजन शिविर में कुछ डेरा डाले हुए हैं।

महाकुंभ 2025 के समापन के बाद भी संगम तट पर अपनों की तलाश जारी है। कई लोग अपने बिछड़े परिजनों की तलाश में खोया-पाया केंद्र के चक्कर लगा रहे हैं, तो कुछ परिजन शिविर में कुछ डेरा डाले हुए हैं। रायपुर छत्तीसगढ़ के 61 वर्षीय बृजलाल चौहान पत्नी की तलाश में दो दिन से भूल-भटके शिविर में हैं। उन्होंने बताया कि मंगलवार को अरैल घाट पर स्नान किया। बड़े हनुमान मंदिर में दर्शन करने के बाद रेलवे स्टेशन जा रहे थे कि उनकी पत्नी जंगी देवी बिछड़ गई।

वहीं, मुजफ्फरपुर धरकरी बिहार के कपलेश्वर साहनी अपने साढू हरिन्द्र साहनी के साथ केंद्र पर अपनी सास कृष्णा देवी को खोजते दिखाई दिए। उन्होंने खोया पाया केंद्र पर भी रजिस्ट्रेशन करवाया। नेपाल के बांके जिला के मनोज थारू अपने पिता जगजन्नन थारू को खोजने पहुंचे थे। उन्होंने बताया कि 25 फरवरी को वह गांव से एक टोली के साथ संगम स्नान को आए थे। वहीं सप्तरी नेपाल के सीताराम शाह 55 वर्षीय पत्नी बिंदी की तलाश में केंद्र पर मायूस दिखाई दिए।

जिला आरा कर्जा बिहार की 84 वर्षीय पार्वती पिछले 14 दिनों से भूले-भटके शिविर में हैं। पार्वती ने बताया कि 9 फरवरी को घर से दो लोगों के साथ संगम स्नान करने आई थीं। मेला में बिछड़ने के बाद 13 फरवरी से वह शिविर में हैं। घर का मोबाइल नंबर भी याद नहीं है। घर पर बेटा, बहू और चार पोते हैं। पार्वती ने बताया कि रात से पेट भी बहुत दर्द कर रहा है। दवा भी नहीं मिल रही हैं।

45 दिनों का महाकुम्भ अब खत्म हो चुका है। महाशिवरात्रि का स्नान भी पूरा हो गया, लेकिन महाकुंभ का पूरी दुनिया में कुछ ऐसा प्रचार-प्रसार हुआ कि इसके बाद भी संगम की रौनक बरकरार है। आमतौर पर जिस संगम तट पर सामान्य दिनों में 25 से 30 हजार श्रद्धालुओं का आगमन होता है, वहां गुरुवार को भी लाखों का मजमा जुटा। इसे देखकर ऐसा लगा कि मानों गुरुवार को भी कोई स्नान पर्व हो। महाकुम्भ खत्म होने के बाद प्रशासन ने स्नान करने वालों का आंकड़ा तो जारी नहीं किया, लेकिन यह सच है कि लाखों श्रद्धालु गुरुवार को भी संगम पर जुटे रहे। पिछले 45 दिनों के बाद पहले दिन जाते वक्त केवल इतना अंतर दिखा कि रोकटोक न के बराबर थी।

भीड़ अधिक होने के कारण संगम तट तक वाहन तो नहीं जा सके, लेकिन लोगों को बहुत अधिक घूमना नहीं पड़ा। सुबह नौ बजे तक हजारों आस्थावान काली सड़क से स्नान के लिए जाते और त्रिवेणी मार्ग से आते दिखे। दोपहर बाद जाने वालों की संख्या बेहद कम थी, लेकिन संगम नोज पूरे दिन भरा ही रहा। पावन त्रिवेणी की लहरों में पुण्य की पांच डुबकी लगाने वाले लोग हर गंगा मइया के घोष लगाते हुए बाहर निकले। माथे पर चंदन टीका, हाथों में गैलन में गंगा जल भरकर लोग अपने घर को निकले।

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