राष्ट्रीय राजमार्गों और एक्सप्रेस वे में फास्टैग के रूप में लगभग शत-प्रतिशत (98 प्रतिशत) इलेक्ट्रॉनिक टोल संग्रह के बावजूद लचर निगरानी के कारण न तो अनावश्यक देरी की समस्या खत्म हो पाई है और न ही गड़बड़ियों पर रोक लगाई जा सकी है। 

स्थिति यह है कि केवल 10 प्रतिशत टोल प्लाजा ही नियमित यानी 2437 निगरानी की सुविधा से लैस हैं और अभी इसके प्रभाव को लेकर कोई रिपोर्ट भी सार्वजनिक नहीं हुई है। 

देश में पिछले पांच साल में टोल प्लाजा की संख्या लगभग दो गुनी हो गई, लेकिन इसके अनुरूप निगरानी के ऐसे उपाय नहीं किए जा सके हैं जो टोल प्लाजा पर लोगों के प्रतीक्षा समय की रियल टाइम जानकारी दे सकें।

सरकार ने विश्व बैंक के एक अध्ययन के आधार पर बताया है कि फास्टैग प्रणाली पर अमल के कारण एक वाहन के लिए औसत प्रतीक्षा समय घटकर 47 सेकेंड आ गया, लेकिन हकीकत यह है कि ज्यादातर टोल ऑपरेटरों की कमजोर प्रणाली के कारण यह स्थिति अभी बहुत दूर हैं। 

2021 में लागू किए गए इस नियम नहीं हुए लागू

वाहनों को टोल प्लाजा पार करने में कम से कम दो से तीन मिनट लग जाता है। उस पर एनएचएआइ ने हाल में यह नियम वापस ले लिया कि अगर लाइन सौ मीटर से लंबी हो जाए तो टोल बैरियर को खुले वाली स्थिति में छोड़ दिया जाना चाहिए। 2021 में लागू किए गए इस नियम पर एक बार भी अमल नहीं हुआ।

उल्टे इसके विरोध के कारण सरकार को नियम वापस लेना पड़ा। लोकसभा में गत सप्ताह केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय की ओर से बताया गया कि फास्टैग की फूल-प्रूफ व्यवस्था के लिए नियमित निगरानी के उद्देश्य से 113 टोल प्लाजा को चुना गया है, जबकि देश में कुल टोल प्लाजा की संख्या 1063 हैं। इनमें भी 457 पिछले पांच साल में बने हैं। 

टोल प्लाजा की व्यवस्था सुधारने की कोशिश कर रही सरकार

रियल टाइम निगरानी वाले सबसे अधिक (36) उत्तर प्रदेश में हैं, जबकि पंजाब, हरियाणा और मध्य प्रदेश के पांच-पांच और दिल्ली का एक टोल प्लाजा खिड़की दौला शामिल है। इस रियल टाइम निगरानी के आधार पर सरकार एआइ सिस्टम के जरिये टोल प्लाजा की व्यवस्था सुधारने की कोशिश कर रही है। मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, रियल टाइम निगरानी वाले टोल प्लाजा की संख्या बढ़ाई जा रही है। 

देरी व्यावहारिक समस्याओं के कारण होती है। सही जगह फास्टैग न लगे होने के साथ डुप्लीकेसी और वालेट में कम बैलेंस और ब्लैक लिस्टेड होना भी एक बड़ी वजह है। एक वाहन के पास होने में तीस सेकेंड भी नहीं लगते, लेकिन कुछ वाहनों में होने वाली देरी प्लाजा पर भीड़ बढ़ा देती है। उदाहरण के लिए बहुत सारे लोग फास्टैग का बार कोड हाथ में लेकर बैठे रहते हैं।

टोल प्लाजा का नीरिक्षण भी नहीं करते अधिकारी

एनएचएआइ को वाहनों की अनुमानित संख्या के प्रोजेक्शन को लेकर भी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।  किसी स्ट्रेच पर वाहन उसकी अपेक्षा से ज्यादा बढ़ गए हैं। इनके अनुरूप टोल गेटों की संख्या कम है। 

पिछले साल जनवरी में एनएचएआइ की ओर से जारी किए गए पॉलिसी सर्कुलर में क्षेत्रीय अधिकारियों और परियोजना निदेशकों के लिए यह अनिवार्य किया गया था कि वे अपने क्षेत्र में आने वाले टोल प्लाजा का बिना सूचना के निरीक्षण करें ताकि देरी जैसी समस्याओं का निराकरण हो सके। लेकिन वह ऐसे निरीक्षण से बचते हैं। इस निरीक्षण के अभाव में ही वाराणसी के एक टोल प्लाजा में नकद वसूली के नाम पर बड़ी धांधली उजागर हुई।

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