भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्त्री ने हाल ही में बांग्लादेश का दौरा किया था। पड़ोसी देश में हिंदुओं के खिलाफ हो रही हिंसा के चलते विदेश सचिव का यह दौरा काफी अहम था। वहां से लौटकर विदेश सचिव ने विदेश मामलों की संसदीय समिति को बताया है कि भारत सरकार बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के ढाका में मोहम्मद यूनुस सरकार को लेकर की गई आलोचना का समर्थन नहीं करती है। कांग्रेस सांसद शशि थरूर की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति को विदेश सचिव मिस्त्री ने यह जानकारी दी है। विदेश सचिव का बांग्लादेश दौरा दोनों देशों के बीच तनाव को कम करने के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि, अभी तक कोई ठोस नतीजे सामने नहीं आए हैं।
शेख हसीना ने पांच अगस्त को भारी विरोध प्रदर्शन के बीच प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था और देश छोड़कर भारत आ गई थीं। तब से वह यहीं रह रही हैं। पक्ष और विपक्ष, दोनों के नेताओं ने शेख हसीना के भारत में रहने पर सवाल नहीं खड़े किए हैं और हसीना के पक्ष में हैं। हसीना के देश छोड़ने के बाद नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार का गठन हुआ है, जिसके बाद से ही वहां रहने वाले हिंदुओं के खिलाफ जबरदस्त तरीके से ज्यादतियां हो रही हैं।
चार दिसंबर को नई दिल्ली से एक वर्चुअल मैसेज के जरिए शेख हसीना ने पहली बार भारत आने के बाद न्यूयॉर्क में अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को संबोधित किया था। इसमें उन्होंने मोहम्मद यूनुस सरकार पर अल्पसंख्यकों का बचाव करने में विफल रहने का आरोप लगाया था। साथ ही, यूनुस सरकार पर अल्पसंख्यकों का नरसंहार करने का भी आरोप लगाया था। ‘द हिंदू’ की रिपोर्ट के अनुसार, बुधवार को मिस्त्री ने स्थायी समिति को बताया कि हसीना संबोधन के लिए प्राइवेट कम्युनिकेशन डिवाइस का इस्तेमाल कर रही हैं। उन्होंने साफ किया कि भारत सरकार ने हसीना को भारतीय धरती से राजनीतिक गतिविधियां चलाने के लिए कोई भी मंच या फिर रिसोर्स नहीं मुहैया करवाया है।
मोहम्मद यूनुस सरकार के साथ मिलकर काम करेगा भारत
विदेश सचिव ने बताया कि बांग्लादेश दौरे के दौरान उन्होंने वहां की अंतरिम सरकार से बताया कि बांग्लादेश के साथ भारत के संबंध किसी खास राजनैतिक दल या किसी खास सरकार से कहीं आगे बढ़कर हैं। भारत बांग्लादेश के लोगों के साथ अपने संबंधों को प्राथमिकता देता है और वह मौजूदा सत्ता के साथ मिलकर काम करेगा। अपनी बांग्लादेश यात्रा के दौरान उन्होंने अपने समकक्ष के साथ बांग्लादेश में हो रहे अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का भी मुद्दा उठाया और भारत की चिंता से उन्हें अवगत करवाया। मालूम हो कि न सिर्फ हिंदुओं के खिलाफ बांग्लादेश में हिंसा हो रही है, बल्कि उनके मंदिरों और भगवान की मूर्तियों पर भी हमले हो रहे हैं। हिंदुओं को नौकरियों से भी इस्तीफा देने पर विवश किया जा रहा है।