वाराणसी। छोटे एवं सीमांत किसान भारतीय कृषि की रीढ़ हैं। उन्हें खेती की आधुनिक तकनीक की पहुंच, उचित कीमतों पर कृषि उपकरणों, बीजों और आसान तरीकों से ऋण की उपलब्धता, मूल्य संवर्धित एवं प्रसंस्कृत उत्पादों के लिए बाजार की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इसे देखते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सन्-2020 की 29 फरवरी को किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) की योजना का चित्रकूट में श्रीगणेश किया था। तब बनारस में देश का पहला एफपीओ खुला। आज इनकी संख्या 50 के आसपास है। उनके सामने नीतियों और बिचौलियों के रूप में गंभीर चुनौतियां हैं। देश में 1.1 हेक्टेयर औसत जोत वाले 86 प्रतिशत से अधिक किसान हैं। उन्हें कृषि उत्पादक के रूप में संगठित कर उन्हें बाजार का महत्वपूर्ण अंग बनाने और उनकी आय बढ़ाने के उद्देश्य से एफपीओ के गठन एवं उनके संवर्धन की योजना बनी। यह योजना उत्पादन, उत्पादकता, बाजार पहुंच, विविधीकरण, मूल्य वर्धित, प्रसंस्करण तथा निर्यात को बढ़ावा देने और किसानों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के उद्देश्य से कृषि आधारित रोजगार के सामूहिक अवसर पैदा करने के दृष्टिकोण पर आधारित है। व्यापक सोच वाली प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी योजना के अनुरूप कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) ने जिले में पहल की। बनारस के टिकरी में किसान उत्पादक संगठन एवं विपणन सहकारी समिति का गठन हुआ। देश के इस पहले एफपीओ ने हरी मिर्च और मशरूम की खेती को आधार बनाया। आज 700 से अधिक किसान इस संगठन के सदस्य हैं। ऐसे ही 40 दूसरे एफपीओ हैं जिनकी औसत सदस्य संख्या 300 से अधिक है। जिले में एफपीओ के जनक एवं पर्यावरण दूत अनिल सिंह की पहल पर टिकरी में जुटे किसान उत्पादकों ने ‘हिन्दुस्तान से केन्द्र सरकार की योजना, खुद के फायदों और खेतों से लेकर बाजार तक खड़ी चुनौतियों पर चर्चा की। अनिल सिंह ने बताया कि एफपीओ के गठन के बाद असंगठित किसान संगठित हुए हैं। केन्द्र सरकार की आर्थिक एवं तकनीक के साथ मार्केटिंग के स्तर पर मदद, उसके लिए जरूरी संसाधनों की उपलब्धता ने बनारस समेत आसपास के किसानों की उत्पादन क्षमता बढ़ाई है लेकिन सब कुछ सहज और अनुकूल हो गया है, ऐसा भी नहीं है।

कई प्रतिभागियों ने कहा कि सरकार की मदद एवं प्रोत्साहन से हम सब कुछ करने के बाद भी घड़रोजों, छुट्टा पशुओं के सामने लाचार हैं। उनके मुताबिक घड़रोज, नीलगाय और सांड़ आदि पूरे जिले के किसानों की बेसिक एवं सबसे गंभीर समस्या बन गए हैं। रखवाली में एक दिन चूकने पर बीघों में खड़ी फसल नष्ट हो जा रही है। इस पर न तो मंत्रालय और प्रदेश का कृषि विभाग संजीदा है और न ही जिला प्रशासन। शार्दूल विक्रम, रामकुमार राय, रविशंकर वर्मा आदि ने कहा कि ये पशु रात में बहुत आक्रामक भी हो जाते हैं। किसान उत्पादकों ने कहा कि सरकार से बाड़बंदी के लिए सब्सिडी मिलनी चाहिए। झटका वायर लगाने के लिए किसानों को आर्थिक मदद की जरूरत है।

कृषि प्रौद्योगिकी के प्रशिक्षण में तेजी आए

टिकरी में औद्यानिक विपणन सहकारी समिति के सचिव रामकुमार राय, काशी विद्यापीठ एफपीओ के निदेशक अमित सिंह का कहना है कि जिले के बहुत से किसान उत्पादक आधुनिक खेती के तौर-तरीकों में अभी प्रशिक्षित नहीं हैं। इसीलिए पंजीकृत 40 एफपीओ में पूर्ण रूप से सक्रिय एफपीओ 15 के ही आसपास हैं। इस स्थिति के लिए कहां चूक हो रही है या कमी है-इसे देखा जाना चाहिए। उन्होंने जोर दिया कि कृषि की सतत विकास प्रौद्योगिकियों का सीधा प्रचार-प्रसार बहुत जरूरी है। साथ ही, लघु एवं सीमांत किसानों का कृषि प्रणाली, पशुपालन, मधुमक्खी, मछली एवं मुर्गी पालन से सीधे जुड़ाव में गति आनी चाहिए। अनिल कुमार सिंह ने कहा कि रोजगार और आय वृद्धि की दृष्ट से डेयरी क्षेत्र में और बेहतर कार्ययोजना बननी चाहिए।

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