रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के साथ टेलीफोन पर बातचीत हुई है। पीएम मोदी ने पुतिन से कॉल के दौरान यूक्रेन युद्ध और वैगनर विद्रोह के बारे में चर्चा की।
क्रेमलिन प्रेस ने कहा कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को फोन पर बातचीत की और यूक्रेन में संघर्ष पर विचारों का आदान-प्रदान करते हुए द्विपक्षीय रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत करने की अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की। दोनों नेताओं के बीच टेलीफोन पर बातचीत शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के आभासी शिखर सम्मेलन के बारे में भी चर्चा हुई।
क्रेमलिन प्रेस सेवा ने कहा, “बातचीत सार्थक और रचनात्मक थी। नेताओं ने रूस और भारत के बीच विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करने के लिए आपसी प्रतिबद्धता दोहराई और संचार जारी रखने पर सहमति व्यक्त की।” रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने मोदी को कूटनीति के माध्यम से संघर्ष को सुलझाने के लिए यूक्रेन के स्पष्ट इनकार के बारे में सूचित किया। बता दें पिछले साल फरवरी से ही रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध चल रहा है।
समाचार एजेंसी स्पुतनिक के मुताबिक, फोन पर बातचीत के दौरान पीएम मोदी ने अमेरिका दौरे की जानकारी रूसी राष्ट्रपति को दी। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पीएम मोदी ने रूस में सशस्त्र विद्रोह के प्रयास के मद्देनजर कानून और व्यवस्था को बनाए रखने और देश की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए रूसी नेतृत्व की निर्णायक कार्रवाइयों के प्रति समझ और समर्थन व्यक्त किया। पुतिन और पीएम मोदी ने शुक्रवार को फोन कॉल के दौरान ब्रिक्स, एससीओ और जी-20 समूहों के भीतर सहयोग पर चर्चा की।
पीएम मोदी ने पिछले शनिवार को वैगनर विद्रोह से निपटने में रूसी नेतृत्व की निर्णायक कार्रवाई के लिए समर्थन व्यक्त किया था। रूसी नेतृत्व द्वारा येवगेनी प्रिगोझिन के नेतृत्व वाली निजी भाड़े की सेना वैगनर ग्रुप द्वारा एक बड़े तख्तापलट को रोकने में कामयाब होने के एक हफ्ते से भी कम समय बाद दोनों नेताओं के बीच टेलीफोन पर बातचीत हुई। निजी भाड़े की सेना ने दो प्रमुख दक्षिण रूसी शहरों पर कब्जा कर लिया था।
बता दें हाल ही में रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने एक कार्यक्रम में पीएम मोदी की तारीफ की और उन्हें रूस का सबसे महान दोस्त बताया है। इसके अलावा पुतिन मेक इन इंडिया पहल की भी तारीफ की। कार्यक्रम के दौरान मेक इन इंडिया का उदाहरण देते हुए पुतिन ने एक ऐसी अर्थव्यवस्था के निर्माण पर जोर दिया जो विदेशी, आयातित उत्पादों का उपभोग करने के बजाय अपने स्वयं के आधुनिक सामान, सेवाओं और तकनीकों का तैयार करते हैं।