यूनाइटेड किंगडम (यूके) में 4 जुलाई को आम चुनाव है। कंजर्वेटिव पार्टी के नेता और पीएम ऋषि सुनक की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। वो अपनी जीत के दावे जरूर कर रहे हैं लेकिन, मौजूदा हालात विपक्षी दल लेबर पार्टी की तरफ ज्यादा बेहतर दिखाई दे रहे हैं। संभावित राजनीतिक बदलाव के बीच चौंकाने वाली खबर यह है कि इस बार ब्रिटेन में चुनाव परिणाम इतिहास रच सकते हैं। भारतीय मूल के सांसदों की संख्या इस बार सबसे ज्यादा हो सकती है। रिपोर्ट के अनुसार, यूके में इस बार 100 से अधिक भारतीय मूल के उम्मीदवारों ने चुनाव में ताल ठोकी है।

ब्रिटेन में भारतीय मूल के राजनेताओं का दबदबा
निवर्तमान ब्रिटिश संसद में 65 अश्वेत सांसदों में 15 भारतीय मूल के सांसद हैं। जिसमें लेबर पार्टी से आठ और कंजर्वेटिव पार्टी से सात सांसद शामिल हैं। 15 भारतीय सांसदों की संख्या ब्रिटिश राजनीतिक इतिहास में काफी ज्यादा जरूर है लेकिन, इस बार यह रिकॉर्ड भी टूट सकता है। इस बार 100 से अधिक भारतीय मूल के उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं। भारतीय मूल के ब्रिटिश राजनेताओं की उल्लेखनीय उपलब्धि का पता इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2022 में ऋषि सुनक के रूप में ब्रिटेन को प्रथम अश्वेत प्रधानमंत्री मिले।

ब्रिटेन में भारतीयों की स्थिति
आंकड़ों से पता चलता है कि भारतीय परिवारों की यूके में काफी धाक है। यहां अधिकतर उच्च आय वर्ग वाले हैं। ब्रिटेन की आबादी का लगभग 3 प्रतिशत होने के बावजूद, भारतीय मूल के लोगों की सकल घरेलू उत्पाद में 6 प्रतिशत से अधिक का योगदान है।  2024 के ब्रिटेन के आम चुनाव में प्रमुख राजनीतिक दलों में रिकॉर्ड संख्या में भारतीय मूल के उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं। दांव पर सुनक की प्रतिष्ठा
ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक के उत्तरी इंग्लैंड में रिचमंड और नॉर्थअलर्टन की अपनी सीट बरकरार रखने की उम्मीद है। साथ ही उनके मंत्रिमंडल की पूर्व सहयोगी प्रीति पटेल के एसेक्स में विथम और सुएला ब्रेवरमैन के फारेहैम तथा वाटरलूविले में जीतने की उम्मीद है। ‘ब्रिटिश फ्यूचर’ थिंक टैंक के एक विश्लेषण के अनुसार, अगर लेबर पार्टी बहुमत हासिल करती है तो उसमें जातीय अल्पसंख्यक सांसदों की अभी तक की सबसे अधिक संख्या हो सकती है। विश्लेषण में कहा गया है कि निवर्तमान संसद में करीब 14 प्रतिशत सांसद जातीय अल्पसंख्यक समुदायों के थे, जबकि नई संसद में उनकी संख्या अधिक रह सकती है। ब्रिटिश फ्यूचर के निदेशक सुंदर कटवाला ने कहा, ‘‘इस चुनाव में जातीय अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्व में बड़ी वृद्धि दिखेगी और यह अब तक की सबसे विविध संसद होगी।’’

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