भाजपा-इंडिया गठबंधन की यूपी की इन 18 सीटों पर असली परीक्षा होगी। इन 18 सीटों पर जो दलित वोट बैंक पिछले चुनाव में गठबंधन के साथ था, वह इस बार बसपा के लिए क्या रंग दिखाता है।

भाजपा-इंडिया गठबंधन की यूपी की इन 18 सीटों पर होगी असली परीक्षा, समझें कैसे

उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में 18 सीटें ऐसी हैं जहां बीते दो चुनावों से कांटे का मुकाबला होता रहा है। इनमें सपा के गढ़ शामिल हैं। भाजपा की जद्दोजहद 2019 में सपा-बसपा गठबंधन द्वारा छीनी 9 सीटें वापस पाकर 80 का आंकड़ा हासिल करने की है। देखना दिलचस्प होगा कि इन 18 सीटों पर जो दलित वोट बैंक पिछले चुनाव में गठबंधन के साथ था, वह इस बार बसपा के लिए क्या रंग दिखाता है। ये सीटें आजमगढ़, लालगंज, संभल, मुरादाबाद, मैनपुरी, सहारनपुर, अमरोहा, रामपुर, मछली शहर, फिरोजाबाद, अंबेडकरनगर, बस्ती, गाजीपुर, जौनपुर, बदायूं, कन्नौज और अमेठी व रायबरेली थीं। भाजपा के बढ़ते ग्राफ के मद्देनज़र सपा-बसपा ने वर्ष 2019 के चुनाव में गठबंधन किया और वर्ष 2014 में भाजपा द्वारा जीती गई नौ सीटें छीन लीं। ये नौ सीटें लालगंज, संभल, मुरादाबाद, सहारनपुर, अमरोहा, रामपुर, गाजीपुर, अंबेडकरनगर और जौनपुर थीं। सपा को इन 18 सीटों में से आजमगढ़ और मैनपुरी बरकरार रखते हुए 11 सीटें मिलीं। भाजपा का ग्राफ 2019 में सरक कर 6 सीटों पर अटक गया। कांग्रेस भी अमेठी सीट हार गई और बमुश्किल रायबरेली सीट जीत सकी।

भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा चुनाव 2014 में 73 सीटें जीती थीं। भाजपा को 72 और अपना दल (एस) को एक सीट मिली थी। समाजवादी पार्टी 30 सीटों पर नंबर दो पर रही थी लेकिन वह अपनी परंपरागत सीटें फिरोजाबाद, आजमगढ़, मैनपुरी, कन्नौज और बदायूं ही बचा पाने में कामयाब हुई थी। वहीं कांग्रेस भी अपनी दोनों सीटें रायबरेली व अमेठी की बचा सकी थी।

बदल गया गठबंधन का साझेदार
अब इस बार भाजपा ताना-बाना बुनने में जुटी है कि कैसे वह अपनी हारी हुई नौ सीटें वापस लेने में सफल हो। वहीं, गठबंधन का साझेदार दलित वोट बैंक रखने वाली बसपा के बजाय कांग्रेस है। सपा ने अपने गठबंधन के साझेदार को बसपा से बदलकर कांग्रेस कर दिया है तो देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा क्या इन सीटों पर वर्ष 2014 जैसी जीत दोहरा पाएगी या इन सीटों पर सपा-कांग्रेस का गठबंधन दबदबा रहेगा।

आजमगढ़ :- यह सीट अखिलेश यादव ने वर्ष 2019 में जीती लेकिन उपचुनाव में भाजपा के दिनेशलाल यादव निरहुआ जीते। भाजपा ने निरहुआ और सपा ने धर्मेंद्र यादव को मैदान में उतारा है। ऐसे में यहां कांटे की लड़ाई तय है।

लालगंज :- वर्ष 2019 में यहां से सपा-बसपा गठबंधन के तहत बसपा की संगीता आजाद 54 फीसदी वोटों के साथ जीती थीं। वह भाजपा में शामिल हो चुकी हैं। भाजपा ने हालांकि नीलम सोनकर और सपा ने दरोगा सरोज को टिकट दिया है।

संभल:-वर्ष 2014 में त्रिकोणीय मुकाबले में भाजपा के सत्यपाल सिंह सैनी जीते थे और 2019 में सीधी टक्कर में सपा को 55 और भाजपा के परमेश्वरी लाल सैनी को 40 फीसदी वोट मिले। इस बार सपा यहां से सांसद रहे स्व: शफीकुर्रहमान बर्क के पोते जियाउर्रहमान बर्क को मैदान में उतारा है। भाजपा ने यहां से परमेश्वर लाल को फिर टिकट दिया है।

मैनपुरी:-सपा प्रमुख अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव उपचुनाव में जीती हैं। उन्हें करीब 64 फीसदी वोट मिले थे। सपा ने यहां से डिंपल यादव को टिकट दिया है। भाजपा ने मैनपुरी से अभी टिकट नहीं दिया है।

मुरादाबाद:-सपा-बसपा गठबंधन ने वर्ष 2019 में भाजपा से यह सीट छीन ली थी। इस बार किसी दल ने अभी मुरादाबाद में प्रत्याशी नहीं उतारे हैं लेकिन इतिहास बताता है कि यहां सीधी और त्रिकोणीय टक्कर में समीकरण अलग-अलग रहते हैं। सीधी टक्कर में वर्ष 2019 में सपा के एसटी हसन जीते थे और त्रिकोणीय मुकाबले में भाजपा के कुंवर सर्वेश कुमार सिंह..।

सहारनपुर:-बसपा के हाजी फजलुर्रहमान बीते चुनाव में यह सीट जीती थी। यहां से इमरान मसूद को टिकट मिलने की चर्चाएं हैं।

अमरोहा:- गठबंधन के तहत बसपा से कुंवर दानिश अली ने जीती थी। भाजपा ने अमरोहा से कुंवर सिंह तंवर को उतारा है। यह सीट भी कांग्रेस के पास गई है।

रामपुर:-जेल में बंद सपा के कद्दावर नेता आजम खां का यहां वर्चस्व रहा है। उपचुनाव में भाजपा ने सपा के मोहम्मद आसिम रज़ा को हराकर यह सीट फिर अपनी झोली में कर ली थी। भाजपा ने उपचुनाव में जीते घनश्याम लोधी को उतारा है।

मछलीशहर:-भाजपा के बीपी सरोज बसपा के त्रिभुवन राम से 181 मतों से जीते थे। टी राम अब भाजपा से विधायक हैं। यहां दलितों के साथ ओबीसी वर्ग की अच्छी तादाद है। गठबंधन के बदले साझेदार के चलते यहां मुकाबला काबिलेगौर होगा।

फिरोजाबाद:-वर्ष 2019 के त्रिकोणीय मुकाबले में अक्षय यादव हार गए और इंद्रसेन जादौन जीते। हार की सबसे बड़ी वजह सपा परिवार के शिवपाल सिंह यादव ही थे। उन्हें 91 हजार वोट पाकर अक्षय यादव की हार का सबब बने। शिवपाल इस बार परिवार के साथ हैं और अक्षय फिर मैदान में हैं।

बस्ती:- भाजपा के दो बार से सांसद हरीश द्विवेदी को फिर टिकट दिया है। वहीं सपा से राम प्रसाद चौधरी उतरे हैं। इस बार यह सीट भाजपा के लिए कठिन परीक्षा लेकर आई है।

अंबेडकरनगर:-भाजपा ने रितेश पाण्डेय को उतारा है। वह बसपा से वर्ष 2019 में गठबंधन प्रत्याशी के रूप में जीते थे। इस बार सपा के कद्दावर कुर्मी नेता लालजी वर्मा मैदान में उतरे हैं। अंबेडकरनगर दलित वोट बैंक का गढ़ रहा है। यहां जातीय वोट किस ओर जाते हैं यह बड़ा सवाल है।

जौनपुर:- जौनपुर सपा का गढ़ रहा है। भाजपा ने वहां से कृपा शंकर सिंह को मैदान में उतारा है। सपा ने अभी प्रत्याशी तय नहीं किया है। 2019 में गठबंधन से बसपा के श्यामसिंह यादव जीते थे।  गठबंधन के लिए यह सीट बचाने और भाजपा के लिए दोबारा पाना चुनौतीपूर्ण नज़र आ रहा है।

गाजीपुर :-सपा ने अफज़ाल अंसारी को मैदान में उतारा है। अफजाल ने बीते चुनाव में भाजपा के कद्दावर नेता मनोज सिन्हा को सीधी टक्कर में हराया था। भाजपा मंथन कर रही है कि किसे टिकट दिया जाए।

कन्नौज:-भाजपा के सुब्रत पाठक करीब एक फीसदी वोटों से वर्ष 2019 में जीते थे। उन्होंने डिंपल यादव को हराया था। इस बार भाजपा ने फिर सुब्रत पाठक को मैदान में उतारा है।

बदायूं:-सपा ने शिवपाल सिंह यादव को टिकट दिया है। भाजपा ने बीते चुनावों में स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्रा मौर्य को टिकट दिया था, जो 47 फीसदी वोट पाकर कांटे की टक्कर में सपा-बसपा गठबंधन के धर्मेंद्र यादव को हराने में कामयाब हुई थीं। वहां सीधी टक्कर में मत भाजपा को ज्यादा मिले। ऐसे में इस सीट पर बसपा की भूमिका भी महत्वपूर्ण बनी हुई है।

अमेठी और रायबरेली में अभी कांग्रेस ने प्रत्याशी नहीं दिए हैं। भाजपा ने अमेठी से स्मृति ईरानी को उतारा है। पिछली बार स्मृति ईरानी कांग्रेस के राहुल गांधी को हराने में सफल हुई थीं। स्मृति ईरानी की जीत का मार्जिन 55 हजार के करीब था। वर्ष 2014 में राहुल ने उन्हें करीब एक लाख मतों के अंतर से हराया था।

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