पीएम नरेंद्र मोदी की ओर से समान नागरिक संहिता लागू किए जाने की वकालत के बाद इस पर चर्चा गर्म है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने पीएम मोदी के बयान के बाद देर रात ही इस पर मीटिंग बुलाई है तो वहीं विपक्ष ने भी इस पर आपत्ति जाहिर की है।

UCC लागू करने के पीछे मकसद यह है कि सभी नागरिकों के लिए धर्म, समुदाय और क्षेत्र से परे शादी, तलाक, विरासत, बच्चों को गोद लेने समेत तमाम निजी मामलों में एक सा ही कानून लागू हो सके। अब तक भारत में अलग-अलग संप्रदायों के लिए कुछ अलग कानूनों को मान्यता भी रही है।

खासतौर पर मुस्लिम समुदाय के कई फैसले तो मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के द्वारा ही लिए जाते हैं। सरकार के इस प्रस्ताव को मुस्लिम समुदाय के कई नेताओं ने मजहब पर हमले की तरह पेश किया है। आइए जानते हैं, आखिर समान नागरिक संहिता पर संविधान क्या कहता है…

भारत के संविधान के आर्टिकल 44 में कहा गया है कि राज्य को अपने नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए प्रयास करने चाहिए। संविधान निर्माताओं ने अपने दौर में इसे लागू नहीं किया था और भविष्य में इसका फैसला संसद पर छोड़ दिया था ताकि सहमति के बाद इसे बनाया जा सके। संविधान लागू होने के बाद से अब तक 7 दशकों में कई बार सरकारों ने समान नागरिक संहिता की बात कही है, लेकिन इस पर फैसला नहीं लिया जा सका। अब तक यह एक संवेदनशील और विवादित मुद्दा बना हुआ है। भाजपा, शिवसेना जैसे दलों के अलावा तमाम राजनीतिक पार्टियां इसे लागू करने से परहेज ही करती रही हैं।

भले ही संविधान में समान नागरिक संहिता को लागू करने के लिए प्रयास की बात कही गई है, लेकिन अभी भारत में अलग-अलग पर्सनल लॉ लागू हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ और हिंदू मैरिज ऐक्ट समेत अलग-अलग संप्रदायों के लिए शादी, तलाक जैसे मामलों के लिए नियम अलग हैं।

क्या हैं हिंदुओं के लिए बने अलग नियम: हिंदू मैरिज ऐक्ट, हिंदू उत्तराधिकार कानून समेत ऐसे कई नियम हैं, जो हिंदू समाज के निजी और पारिवारिक मामलों पर लागू होते हैं। 1955 में बना हिंदू मैरिज ऐक्ट शादी और तलाक के मामलों पर लागू होता है। इसके अलावा हिंदू उत्तराधिकार ऐक्ट, 1956 में संपत्ति के बंटवारे के नियम बताए गए हैं। हिंदू उत्तराधिकार कानून के तहत परिवार की बेटियों को भी माता-पिता की संपत्ति पर बराबर का हक है। उन्हें बेटों के बराबर ही संपत्ति दिए जाने का प्रावधान है।

मुस्लिम पर्सनल लॉ में क्या प्रावधान: भारत में रहने वाले मुसलमान मुस्लिम पर्सनल लॉ का पालन करते हैं। इन्हें शरियत के तहत मान्यता की बात कही जाती है। मुस्लिम पर्सनल लॉ ऐप्लिकेशन ऐक्ट, 1937 के तहत मुसलमानों की शादी, तलाक, उत्तराधिकार और मेंटनेंस को लेकर फैसले होते रहे हैं। हालांकि तीन तलाक को लेकर विवाद बढ़ा तो एक अलग कानून ही बन गया, जो इसे गलत ठहराता है। यहूदी, ईसाई और पारसी समुदायों के लिए भी अलग से नियम हैं। इन समुदायों पर इंडियन सक्सेशन ऐक्ट लागू होता है।

आखिर भारत में UCC पर क्यों रही है तीखी बहस

UCC की चर्चा छिड़ते ही मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भड़क गया है। उसने कहा है कि यह हमारी पहचान को खत्म करने की साजिश है। दरअसल भारत में यह मसला सिर्फ कानूनी नहीं रहा है बल्कि सामाजिक और राजनीतिक तौर पर बेहद संवेदनशील है। मुस्लिमों का एक बड़ा वर्ग यूसीसी को अपनी पहचान खत्म करने की साजिश मानता है, जबकि देश का एक वर्ग मानता है कि अखंडता और एकता के लिए समान कानून जरूरी है। इसके पैरोकार संविधान के आर्टिकल 44 और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देकर इसे लाने की वकालत करते रहे हैं।

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