बिहार चुनाव के मद्देनजर महागठबंधन के भीतर आपसी रंजिश खत्म होने का नाम नहीं ले रही। कई सीटों पर गठबंधन के घटक दल- कांग्रेस और आरजेडी आमने-सामने हैं। ऐसे में बिहार चुनाव के लिए कांग्रेस पर्यवेक्षक और राजस्थान के पूर्व सीएम अशोक गहलोत आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव से मिलने गए थे लेकिन उनके बीच कोई पुख्ता बातचीत नहीं हो सकी। आरजेडी नेतृत्व ने कांग्रेस को खाली हाथ लौटाया मगर गहलोत ने मीडिया में बातचीत के दौरान कहा कि कल एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की जाएगी, जिसमें तस्वीर पूरी तरह से साफ हो जाएगी।
बैठक के बाद अशोक गहलोत ने मीडिया से कहा, “लालू जी और तेजस्वी जी से बहुत अच्छी बातचीत हुई। तमाम काम अच्छे से चल रहे हैं। 5-7 सीटों पर फ्रेंडली फाइट है, एक-दो दिन में जो भी भ्रम है, वह पूरी तरह दूर हो जाएगा।”
गहलोत ने माना कि बिहार की 243 विधानसभा सीटों में से कुछ पर महागठबंधन के घटक दल आमने-सामने आ सकते हैं। उन्होंने इसे मतभेद नहीं बल्कि लोकतांत्रिक जोश का हिस्सा बताया। उन्होंने कहा, “कभी-कभी कार्यकर्ताओं में उत्साह होता है, स्थानीय परिस्थितियों में ऐसी स्थितियां आती हैं। इसे कमजोरी नहीं, मजबूती की निशानी समझिए।”
गौरतलब है कि करीब 11 सीटों पर कांग्रेस और आरजेडी दोनों के उम्मीदवारों ने दावेदारी ठोक दी है, जिससे अंदरूनी नाराजगी बढ़ी है। खासकर सीमांचल और कोसी इलाकों में कई ऐसी सीटें हैं जहां सीट एडजस्टमेंट पर सहमति नहीं बन पाई है।
इस बीच, बिहार कांग्रेस प्रभारी कृष्णा अल्लावरु ने भी साफ किया कि पार्टी का लक्ष्य सिर्फ सत्ता नहीं, बल्कि बिहार के लोगों का भविष्य है। उन्होंने कहा, “बिहार में मुकाबला 243 सीटों पर है और यह सीधी लड़ाई एनडीए के खिलाफ है। हम जनता के मुद्दों को लेकर मजबूती से चुनाव लड़ेंगे।” अल्लावरु ने विश्वास जताया कि महागठबंधन जनता के मुद्दों पर मजबूती से चुनाव लड़ेगा और बिहार में बदलाव की बयार लाएगा।
हालांकि कांग्रेस नेताओं के बयान में एकता का संदेश साफ झलकता है, मगर जमीनी हकीकत कुछ और कहती है। अंदरखाने आरजेडी और कांग्रेस दोनों के कार्यकर्ताओं में टिकट को लेकर असंतोष है। कई जगह कार्यकर्ताओं ने खुलकर नाराजगी भी जताई है। अब सबकी नजरें लालू-तेजस्वी और कांग्रेस की अगली प्रेस कॉन्फ्रेंस पर टिकी हैं। सवाल ये है कि क्या यह दोस्ताना मुकाबला सच में दोस्ताना रहेगा या चुनावी रण में मतों की कीमत पर भारी पड़ जाएगा?
