(मथुरा)(ए.के.शर्मा) उड़त गुलाल लाल भये बदरा, गुलाल, रंग, प्रेम और श्रद्धा का ऐसा संगम कि हर कोई कान्हा के गांव में होली की मस्ती में मस्त होकर झूम उठा। बरसाना की हुरियारिनों ने हुरियारों पर लाठियों की बरसात शुरू की तो मयूरी थिरकन पर लाठियों के प्रहार को अपनी ठाल पर सहते हुए हुरियारे ब्रज की होली के वास्तविक आनंद से सराबोर हो गये। सोमवार को ब्रज के बरसाना गांव में लठामार होली में द्वापर कालीन परंपराएं एक बार फिर जीवंत हो उठीं। हुरियारिनों की प्रेम पगी लाठियों के प्रहार और हुरियारों के प्रहार को बचाने के लिए किये जा रहे प्रयासों को देखने में श्रद्धालु ऐसे मगन हुए कि अपनी सुध बुध ही खो बैठे। हर कोई इस दृश्य को हमेशा के लिए अपने नयानों में समा लेना चाहता था। दोपहर बाद से शुरू हुई इस लीला को देखते देखते कब शाम हो गई किसी को पता ही नहीं चला लेकिन किसी की चाहत नहीं थी कि यह सिलसिला थे, ऐसा मालूम हो रहा था मानो भगवान सूर्य देव भी इस लठामार होली को देखने के लिए ठिठक गये हों। दोपहर बाद बरसाना की रंगीली गली और कटारा चौक पर लठामार होली देखने के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालु जुटे।
जबकि इस अवसर पर बरसाना पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की संख्या लाखों में थी। हजारों बरसों से चली आ रही इस परंपरा के तहत नंदगांव के हुरियारे पिली पोखर पर आते है। जहां उनका स्वागत बरसाना के लोग ठंडाई और भांग से करते है। यहां से हुरियारे सज धज कर राधा रानी के चरणों में माथा टेकने और होली खेलने की अनुमति लेने के लिए लाडली जी के पहाड़ी पर बने मंदिर में पहुंचते हैं। हुरियारों की यह दौड भी लोगों मान मोह लेती है। रंग गुलाल में सराबोर पीले परिधानों में सुसज्जित हाथों में ठाल लिये हुरियारे आकर्षण का केंद्र बन जाते हैं। यहां से हुरियारे रंगली गली पहुंचे। इस बार कटारा चौक पर भी लठामार होली का आयोजन किया गया लेकिन रंगली गली ही लोगों के आकर्षण का केन्द्र रही।