संसद का मॉनसून सत्र जारी है, लेकिन मणिपुर हिंसा को लेकर दोनों सदनों में खूब शोर-शराबा हो रहा है और सत्र के पहले तीन हंगामें की भेंट चढ़ चुके हैं। इस बीच खबर है कि विपक्षी गठबंधन यानी भारतीय राष्ट्रीय विकास समावेशी गठबंधन (INDIA) ने लोकसभा में भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का फैसला किया है।
तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के कार्यकर्ताओं ने मंगलवार को दावा किया। ‘INDIA’ के घटक दलों के नेताओं की मंगलवार सुबह हुई बैठक में अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिए जाने के संदर्भ में चर्चा की गई।
अविश्वास प्रस्ताव क्या है?
अविश्वास प्रस्ताव (नो कॉन्फिडेंस मोशन) लाने के कई कारण हो सकते हैं। सबसे प्रमुख तब होता है, जब लोकसभा में विपक्ष के किसी दल को लगता है कि मौजूदा सरकार के पास बहुमत नहीं है या फिर सरकार सदन में विश्वास खो चुकी है, तो वह अविश्वास प्रस्ताव लाया जाता है। अविश्वास प्रस्ताव केवल लोकसभा में ही लाया जा सकता है। सदन का कोई भी सदस्य अविश्वास प्रस्ताव पेश कर सकता है। सदस्य को सुबह 10 बजे से पहले प्रस्ताव की लिखित सूचना देनी होती है और कम से कम 50 (सांसद) सदस्यों को प्रस्ताव स्वीकार करना होता है। इसके बाद स्पीकर प्रस्ताव पर चर्चा की तारीख तय करते हैं। अविश्वास प्रस्ताव लाए जाने के बाद सत्ताधारी पार्टी को साबित करना होता है कि उनके पास बहुमत है। अगर बहुमत साबित नहीं हो पाता है तो फिर सत्ता में मौजूद पार्टी को इस्तीफा देना होता है। राज्यसभा के सांसद वोटिंग प्रक्रिया में भाग नहीं ले सकते।
पूर्ण बहुमत में मोदी सरकार, फिर अविश्वास प्रस्ताव क्यों ला रहा विपक्ष?
संसद का मॉनसून सत्र शुरू होने के बाद से विपक्षी दल मांग कर रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सदन के भीतर मणिपुर हिंसा पर बयान दें। अब सूत्रों की मानें तो पीएम मोदी पर संसद के भीतर बयान देने का दबाव बनाने के कई विकल्पों पर विचार करने के बाद यह फैसला किया गया कि अविश्वास प्रस्ताव ही सबसे कारगर रास्ता होगा जिसके जरिए सरकार को इस मुद्दे पर चर्चा के लिए विवश किया जा सकेगा। विपक्ष से जुड़े सूत्रों का यह भी कहना है कि राज्यसभा के भीतर भी मणिपुर के विषय को लेकर सरकार को घेरने का सिलसिला जारी रहेगा। कह सकते हैं कि विपक्ष द्वारा सत्ताधारी दल पर दबाव बनाने के लिए अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है।
कहां टिकेगा विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव?
केंद्र की मोदी सरकार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में है। अगर विपक्ष मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आता है तो उसका फेल होना तय है। लोकसभा में मोदी सरकार बेहद मजबूत स्थिति में है। लोकसभा में अकेले बीजेपी के पास 301 सांसद हैं। वहीं भाजपा नीत गठबंधन यानी एनडीए के पास 333 सांसद हैं। विपक्ष की बात करें तो उसके पास इससे आधे भी नहीं हैं। पूरे विपक्ष के पास कुल 142 लोकसभा सदस्य हैं। सबसे ज्यादा 50 सांसद कांग्रेस के ही हैं। वोटिंग के समय दोनों पक्षों का आंकड़ा भिन्न हो सकता है क्योंकि कई लोकसभा सांसद सदन में मौजूद नहीं हो सकते हैं।
अब तक कितने अविश्वास प्रस्ताव लाए गए?
आजादी के बाद से लोकसभा में 27 अविश्वास प्रस्ताव लाए गए हैं। आखिरी अविश्वास प्रस्ताव मोदी सरकार के खिलाफ विपक्षी दल जुलाई 2018 में लेकर आए थे। हालांकि ये प्रस्ताव बुरी तरह फेल हो गया था। सत्ताधारी भाजपा सरकार के समर्थन में 325 सांसदों ने वोट किया था वहीं विपक्षी प्रस्ताव के समर्थन में 126 वोट पड़े थे। जुलाई 2018 से पहले 2003 में सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली तत्कालीन एनडीए सरकार के खिलाफ पेश किया था।
कब आया था अविश्वास प्रस्ताव?
1962 के युद्ध में चीन से हारने के तुरंत बाद, अगस्त 1963 में कांग्रेस नेता आचार्य कृपलानी द्वारा प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के खिलाफ पहला अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था। हालांकि, प्रस्ताव फेल हो गया। प्रधानमंत्री के रूप में इंदिरा गांधी को सबसे अधिक अविश्वास प्रस्तावों का सामना करना पड़ा। उनके खिलाफ 15 बार ये प्रस्ताव लाया गया था। हालांकि वह 15 फ्लोर टेस्ट में हर बार सरकार बचाने में कामयाब रही थीं। पश्चिम बंगाल के पूर्व सीएम सीपीआई (एम) के ज्योतिर्मय बसु ने चार अविश्वास प्रस्ताव पेश किए हैं।
किस नियम में आता है अविश्वास प्रस्ताव?
अविश्वास प्रस्ताव को लेकर संविधान में कोई जिक्र नहीं किया गया है। लेकिन, अनुच्छेद एक सौ अठारह के अंतगर्त हर सदन अपनी प्रक्रिया बना सकता है। जबकि, नियम 198 के तहत ऐसी व्यवस्था है कि कोई भी सदस्य लोकसभा अध्यक्ष को सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दे सकता है। ठीक ऐसे ही मंगलवार यानि 18 जुलाई को तेलुगू देशम पार्टी और कांग्रेस सदस्य की तरफ से नोटिस दिया। जिस पर अब शुक्रवार को बहस होगी।
किसने कितने अविश्वास प्रस्तावों का किया सामना
नरसिम्हा राव को तीन अविश्वास प्रस्तावों का सामना करना पड़ा, मोरारजी देसाई को दो और जवाहरलाल नेहरू, राजीव गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी को एक-एक अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा। अविश्वास प्रस्ताव पर सबसे लंबी बहस की अवधि लाल बहादुर शास्त्री के खिलाफ 24.34 घंटे थी, जिन्हें तीन बार सदन में बहुमत साबित करना पड़ा था। 1979 को छोड़कर अधिकांश अविश्वास प्रस्ताव गिर गए हैं। उस समय प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई को पद छोड़ना पड़ा था। 1999 में जब भाजपा सहयोगी अन्नाद्रमुक ने गठबंधन छोड़ा था तब वाजपेयी सरकार की सत्ता चली गई थी।