इस साल सोने की कीमतों में आए जोरदार उछाल ने दुनियाभर में तहलका मचा दिया है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में भाव 3600 डॉलर प्रति औंस पहुंच चुके हैं। गोल्डमैन सैक्स की रिपोर्ट के अनुसार, अगर यह तेजी बरकरार रही तो अगले साल इसके दाम 4500 डॉलर तक पहुंच सकते हैं। भारत में यह कीमत 1.45 लाख के करीब होगी। विशेषज्ञ यह भी अनुमान जता रहे हैं कि इस साल दीवाली पर ही सोना सवा लाख का स्तर भी छू सकता है। पिछले धनतेरस को सर्राफा बाजारों में सोना 78846 रुपये प्रति ग्राम के रेट पर खुला था।

अंतरराष्ट्रीय बाजार में मजबूती के बीच दिल्ली सर्राफा बाजार में मंगलवार को सोने की कीमत 5,080 रुपये की छलांग के साथ अबतक के उच्चतम स्तर 1,12,750 रुपये प्रति 10 ग्राम पर पहुंच गई। चांदी की कीमत भी 2,800 रुपये उछलकर रिकॉर्ड 1,28,800 रुपये प्रति किलोग्राम (सभी करों सहित) हो गई। अखिल भारतीय सर्राफा संघ ने यह जानकारी दी।

सोने के दाम जनवरी से अब तक 35 फीसदी से अधिक उछल चुके हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में भाव 3600 डॉलर प्रति औंस के करीब पहुंच गया है। भारत में भी यह ₹1.12 लाख के स्तर के पार निकल गया है।

विशेषज्ञों का कहना है कि इस बार सोने की कीमतों में तेजी के पीछे सिर्फ महंगाई या आम लोगों की खरीदारी नहीं, बल्कि बड़े वैश्विक कारण हैं। मौजूदा हालात बता रहे हैं कि सोने में तेजी का यह सफर और लंबा हो सकता है। इससे निवेशकों और ग्राहकों दोनों की दिलचस्पी लगातार बनी हुई है।

निवेश बैंक गोल्डमैन सैक्स की रिपोर्ट में कहा गया है कि मौजूदा वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक अनिश्चितता के माहौल में सोना सुरक्षित निवेश बना हुआ है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व पर ब्याज दरें घटाने का दबाव और डॉलर पर भरोसा कम होने जैसी परिस्थितियों ने निवेशकों को यूएस ट्रेजरी से रकम निकालकर सोने में निवेश करने के लिए प्रेरित किया है।

सोने की असली मांग अब दुनियाभर के केंद्रीय बैंकों से आ रही है। अमेरिका और डॉलर पर भरोसे में कमी और लगातार बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव की वजह से कई देश अपने केंद्रीय भंडार की रणनीति बदल रहे हैं और इसमें सोने का प्रभुत्व मजबूत हो रहा है।

2025 की पहली तिमाही में अंतरराष्ट्रीय भंडार में सोने का हिस्सा 3 प्रतिशत अंक बढ़कर 24 प्रतिशत हो गया, जो लगातार तीसरे वर्ष की बढ़त के बाद तीन दशकों में इसका उच्चतम स्तर है। वहीं, 2025 की पहली तिमाही में केंद्रीय बैंकों की सोने की खरीद पिछले पांच साल के औसत से 24% ज्यादा रही। चीन और पोलैंड इसमें सबसे आगे रहे।

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