कभी स्वच्छ वायु सर्वेक्षण में देश का पहला स्थान पाने वाला लखनऊ अब लगातार फिसलता जा रहा है। इस साल की रिपोर्ट में लखनऊ देश में 15वें स्थान पर लुढ़क गया है। हालत यह है कि आगरा, झांसी और मुरादाबाद जैसे छोटे शहर भी लखनऊ से आगे निकल गए हैं और केंद्र सरकार से नकद सम्मान पा चुके हैं, जबकि राजधानी अपने ही कचरे और धूल में दम घुटते हुए पिछड़ रही है।

 नगर निगम की सुस्ती और कुप्रबंधन ने लखनऊ की हवा को जहर बना दिया।

— टूटी सड़कों से उड़ती रही धूल, मरम्मत नहीं कराई गई।

— पानी का छिड़काव बंद रहा, केवल कागज़ी दावे किए गए।

— पेड़-पौधे लगाने में घोर लापरवाही।

— जगह-जगह कूड़े के ढेर, सफाई का हाल बदतर।

— प्रदूषण नियंत्रण पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।

रैंकिंग गिरने का सीधा असर शहर के बजट पर पड़ेगा। केंद्र सरकार 16वें वित्त आयोग से मिलने वाले बजट में कटौती करेगी। यानी, नगर निगम की लापरवाही का खामियाजा अब लखनऊ की जनता को भुगतना पड़ेगा।

नगर निगम के पर्यावरण अभियंता संजीव प्रधान ने रैंकिंग गिरने पर सिर्फ इतना कहा कि अगर 15वीं रैंक आई है तो यह खराब है, आगे सुधार करेंगे। यह बयान बताता है कि जिनके कंधों पर लखनऊ की हवा बचाने की जिम्मेदारी है, वे खुद स्थिति से बेखबर हैं।

राजधानी का हाल यह है कि जहाँ छोटे शहर अपनी साफ हवा पर इनाम कमा रहे हैं, वहीं लखनऊ अपनी पहचान खोता जा रहा है। सवाल साफ है कि जब पूरे प्रदेश के शहर आगे बढ़ रहे हैं तो लखनऊ पिछड़ क्यों रहा है? इसका जवाब जनता जानना चाहती है।

महापौर, सुषमा खर्कवाल रैंकिंग गिरना दुर्भाग्यपूर्ण है। हम इस मामले में नगर आयुक्त और अन्य जिम्मेदार अधिकारियों से स्पष्टीकरण मांगेंगे। किन परिस्थितियों में ऐसा हुआ है, इसे बताना होगा। आगे सुधार भी करना होगा।

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