राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कई मुद्दों पर बयान दिए हैं. उन्होंने व्यापार, हिंदुत्व और संघ की विचारधारा पर अपनी बात रखी. भागवत ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार होना चाहिए, लेकिन वह दबाव में नहीं होना चाहिए. उन्होंने स्वदेशी पर जोर दिया और कहा कि जो चीजें देश में बनती हैं, उन्हें ही इस्तेमाल किया जाना चाहिए.

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मोहन भागवत ने कहा, “अंतरराष्ट्रीय व्यापार चलेगा, लेकिन इसमें दबाव नहीं होना चाहिए. हम घर में शिकंजी बनाकर पी सकते हैं, कोल्ड ड्रिंक क्यों पीनी है. जो अपने देश में बनता है, उसको देश में बनाना और खाना चाहिए.”

उन्होंने हिंदुत्व की विचारधारा को ‘सत्य और प्रेम’ के दो शब्दों में समझाया. उन्होंने कहा कि दुनिया एकजुटता पर चलती है, सौदों या अनुबंधों पर नहीं. हिंदू राष्ट्र का जीवन मिशन विश्व कल्याण है.
संघ की आलोचना और मकसद…

मोहन भागवत ने कहा कि किसी भी स्वयंसेवी संगठन का इतना कड़ा और कटु विरोध नहीं हुआ, जितना संघ का हुआ है. 1925 में संघ की स्थापना करते वक्त, डॉ. हेडगेवार ने ‘संपूर्ण हिंदू समाज का संगठन’ बनाने की बात कही थी.
आरएसएस चीफ ने कहा, “हिंदू राष्ट्र का मिशन क्या है? हमारा हिंदुस्तान, इसका मकसद विश्व कल्याण है. विकास के क्रम में दुनिया ने अपने अंदर खोजना बंद कर दिया. अगर हम अपने अंदर खोजें, तो हमें शाश्वत सुख का स्रोत मिलेगा, जो कभी खत्म नहीं होगा. इसे पाना ही मानव जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य है और इसी से सभी सुखी होंगे. सभी एक-दूसरे के साथ सद्भाव से रह सकेंगे, विश्व के संघर्ष समाप्त हो जाएंगे. विश्व में शांति और सुख होगा.”

उन्होंने आगे कहा, “जिसे हिंदू समाज कहते हैं, उसे देश के प्रति जिम्मेदार रहना होगा. संघ के एक पुराने प्रचारक दादा राव परमारथ ने आरएसएस को ‘हिंदू राष्ट्र के जीवन मिशन का विकास’ बताया था.”

मोहन भागवत ने कहा, “संघ 100 साल चलने के बाद भी नए क्षितिज का वर्णन क्यों कर रहा है? एक वाक्य में उत्तर देना है, तो प्रार्थना के अंत में हम स्वयंसेवक लोग रोज कहते हैं- भारत माता की जय.”

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