जिस योजना को योगी सरकार ने पहले कार्यकाल में भ्रष्टाचार पर संपूर्ण लगाम लगाने, परियोजनाओं की गुणवत्ता व समय पर काम पूरा कराने की मंशा से लागू किया, उसे अब खुद नियोजन विभाग के बड़े अधिकारियों के काकस ने ही ताक पर रख दिया है। जी हां, कैबिनेट से पास हुए ‘ईपीसी मिशन’ की कार्यशैली से उलट अधिकारी अब मनमाने प्रशासनिक आदेश के जरिये ही मनचाहे ठेकेदारों और कंपनियों को निविदाएं बांट रहे हैं। साठगांठ कर परियोजनाओं की लागत भी 10 फीसदी से अधिक तक बढ़ा कर एक ओर कमीशन की बंदरबांट की जा रही है तो दूसरी ओर सरकारी खजाने को चूना लगाया जा रहा है।

राज्य सरकार ने वर्ष 2019 में भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टालरेंस की नीति लागू करने के लिए ‘ईपीसी मिशन’ यानी इंजीनियरिंग, प्रोक्योरमेंट और कंस्ट्रक्शन मिशन को शुरू किया। मकसद था कि 50 करोड़ रुपये से बड़ी परियोजनाएं समय पर पूरी हों और बार-बार लागत पुनरीक्षण के जरिये धन की बंदरबांट और देरी को रोका जा सके। इसका लाभ भी हुआ। बड़ी कंपनियों में प्रतिस्पर्धा बढ़ी और टेंडर 15 फीसदी तक निचले स्तर पर डाले जाने लगे। कई बड़ी परियोजनाएं जैसे 14 मेडिकल कालेज और 18 मंडलीय अटल आवासीय विद्यालय का निर्माण कम लागत में और समय पर पूरी गुणवत्ता के साथ हुआ। इनमें गोण्डा, पीलीभीत, सुलतानपुर मेडिकल कालेज शामिल हैं। उदाहरण के लिए आवासीय अटल विद्यालय की लागत 75 करोड़ थी, जिसे करीब 70 करोड़ में पूरा कर पांच करोड़ बचाए गए। मेडिकल कालेजों की औसत लागत 275 करोड़ के पास थी, उसे औसतन 250 करोड़ में ही पूरा किया और प्रत्येक पर करीब 20-25 करोड़ रुपये बचाए।

दरअसल, ईपीसी मिशन के अधिकारियों को लगा कि यह बचत का पैसा क्यों सरकार के खजाने में जाए और क्यों न स्वयं इसकी बंदरबाट की जाए। विभिन्न परियोजनाओं को देखें तो करीब 1500 करोड़ रुपये से ज्यादा की सरकार को बचत हुई लेकिन अधिकारियों को मिलने वाली 5 से 8 फीसदी तक के कमीशन पर लगाम लगी। यहीं से ईपीसी मिशन के बड़े इंजीनियर और अधिकारियों ने अपने लिया रास्ता तलाशना शुरू कर दिया। जब ठेकेदार कुल टेंडर लागत से कम पर काम लेने लगे और सभी काम गुणवत्ता पर हुए तो कंपनियों के लिए कमीशन बंद करना मजबूरी बन गया।

आश्चर्य यह की कैबिनेट अनुमोदित ‘ईपीसी मिशन’ की पाक-साफ परंपरा को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की इच्छाशक्ति से शुरू किया गया, उसे चंद अधिकारियों का काकस भट्ठा बिठाने में जुटा है। एक के बाद एक कई प्रशासनिक आदेश जारी कर चहेती कंपनियों और ठेकेदारों को काम देने के चक्कर में टेंडर की शर्तों में मनमाफिक बदलाव किये जा रहे हैं। टेंडर की शर्तों में प्रस्तुतिकरण व इंटरव्यू जोड़ा गया ताकि इंटरव्यू में चहेते को पास और अन्य प्रतिस्पर्धियों को फेल किया जा सके। चहेती कंपनियों को काम देने के लिए उप्र राजकीय निर्माण निगम जैसी विश्व स्तरीय एजेंसियों को भी फेल कर दिया गया ताकि मनचाहे ठेकेदार को लागत से 10 प्रतिशत से अधिक पर काम दिया जा सके। कैबिनेट को भी गुमराह करने की कोशिश की जा रही है। आश्चर्य यह कि इस मनमानी से मुख्यमंत्री कार्यालय तक को भ्रमित किया जा रहा है।

0Shares

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *