प्रोफे आर एन त्रिपाठी पूर्व सदस्य- उप्र लोकसेवा आयोग। प्रोफेसर-समाजशास्त्र विभाग काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी

(सरदार बल्लभभाई पटेल की 150 वीं जयंती पर विशेष)

विजडम इंडिया।

वर्तमान राजनैतिक परिवेश में उस असरदार सरदार की कमी को यद्यपि हमारे प्रधानमंत्री और गृहमंत्री कुछ हद तक पूरी कर रहे हैं,लेकिन जिस तरह से देश की अखंडता,एकता और राष्ट्रीयता की भावना के प्रति एक विरोधाभास वर्तमान समाज में उभरता जा रहा है उसके लिए उस असरदार सरदार यानी सरदार वल्लभ भाई पटेल जैसा ही कर्तव्याग्रही, दृढ़ निश्चयी,चरित्रवान नेताओ की आज भी हमें जरूरत है, चाहे वह राज्यों में हो और चाहे वह केंद्रीय मंत्रिमंडल में हो। उस महान दृढ़ निश्चयी नेता के हमारे प्रधानमंत्री और हमारे गृह मंत्री एक पर्याय हैं परंतु यह पर्याय अभी भी सीमित है। भारतीय राजनीति के लिए आज बहुत सारी जगहों पर सरदार पटेल की निर्णयात्मक शक्ति की तत्काल आवश्यकता है।
आज बहुत सारे फोरम पर उनकी जीवनी और उनके वृतांत का वर्णन किया जाएगा लेकिन सरदार पटेल ने जिन 565 रियासतों को भारत में विलय किया वह सरदार पटेल की नीति ही थी जो उनके सरदार होने के उपाधि को विभूषित करती है। साम, दाम, दंड ,भेद चाणक्य की जो नीति थी उसे नीति का अनुसरण करके उन्होंने कुछ रियासतों को सामान्यतौर पर समझा बुझा करके, कुछ को अर्थ का लालच देकर के ‘प्रिवीपर्स’ की बात जो चलती है मिलाया और जब आवश्यकता आई तो उन्होंने हैदराबाद के निजाम और त्रावनकोर के राजा को दंड देकर के भी मिलाया जहां तक भेद की बात चलती है तो उनकी अपनी लॉजिक थी अपने तर्क से उन्होंने जूनागढ़ के रियासत और कई रियासतों का भारत में विलय कराया। एक वह समय था जब पूरे भारत को विखंडित करने की योजना से भारत को स्वतंत्रता दी जाने वाली थी प्रधानमंत्री की एटली की नीति थी की लॉर्ड माउंटबेटन को भेज करके भारत के टुकड़े टुकड़े कर दिए जाएं और भारत स्वयं में बट जाएगा तो पुनः हम उसके संरक्षक बने रहेंगे,अंग्रेजो की इस कुटिल नीति को उस समय समझकर सरदार पटेल ने जो कार्य गांधी और नेहरू के विरोध में जाकर किया वही उनको आज इतना पूजनीय बना दिया।
31 अक्टूबर 1875 को नडियाद के छोटे से कस्बे में जन्मा हुआ वह बालक उस परिवार में जन्म लिया जिनके पिता झबेर भाई पटेल 1857 के उस विद्रोह की में भी शामिल थे जो मंगल पांडेय ने शुरू किया था।वह नडियाद के प्रबल अंग्रेजों के विद्रोही व्यक्तियों में से एक थे। सरदार पटेल के भाई वकील थे परिवार में वकालत का पेशा होने की नाते उन्होंने भी अपनी वकालत शुरू किया और एक सफल वकील की भांति कार्य करना शुरू किया परंतु उनकी रगों में केवल प्रेक्टिस ही नहीं थी बल्कि देश प्रेम के प्रति देश की समस्याओं के प्रति एक अनूठा अखंड राष्ट्रवादि पल रहा था और इसलिए वह नेतृत्व की शक्ति जो उनमें जन्मजात छुपी हुई थी, उनको अंततः विकसित ही करनी पड़ी।
विद्यार्थी नेता के रूप में उन्होंने सबसे पहले अपने गुरु को जो हाई स्कूल में उन्हें पढाते थे, उन्हें अपने बल से वहां का पार्षद बनवा दिया। बाद में स्वयं अपना पहला चुनाव कारपोरेटर का ही वह लड़े और विजई भी हुये।
‘बारदोली’ जो उस समय सूरत जिले का एक प्रखंड मात्र था वहां पर अंग्रेजों द्वारा काफी रेवेन्यू बढ़ा दिया गया था सरदार वल्लभ भाई पटेल से बर्दाश्त नहीं हुआ,वहां गांधी के पास विरोध करने का कोई साहसिक विकल्प नहीं था,फिर पटेल जी ने इसका विरोध किया और उस विरोध में पहली बार अग्रेजो के खिलाफ आंदोलन में उन्होंने महिलाओं को शामिल किया और सारी महिलाएं घर के बाहर आकर विरोध की और उनकी मांगे मान ली गयी। वह विद्रोह ‘बारडोली विद्रोह’ के नाम से प्रसिद्ध हो गया और सरदार वल्लभ भाई पटेल उसमें पूर्णतया सफल हो गए।
पटेल जी की कुछ अपना अलग व्यक्तित्व था वह किसी प्रकार से देश के स्वाभिमान से समझौता नहीं चाहते थे।गांधी इरविन पैक्ट जिसे इतिहासकारों ने यदि निष्पक्षता से पटेल का अध्ययन किया होता तो वह मानते हैं कि कभी भी पटेल, गांधी नेहरू से सहमत नहीं रहे। 23 मार्च 1931 को जब भगत सिंह और राजगुरु की फांसी दे दी गई उसे समय पूरे देश में गांधी के प्रति नफरत व विद्रोह शुरू हो गया था,उस समय एक मात्र ऐसे राजनीतिज्ञ पटेल ही थे जो गांधी को बचाएं और आज गांधी राष्ट्रपिता के रूप में प्रतिष्ठित हुए वरना उस समय गांधी की अस्मिता ही समाप्त हो जाती।गांधी इरविन पैक्ट के सख्त खिलाफ थे पटेल जी। फांसी के 6 दिन बाद ही कांग्रेस का अधिवेशन था और देशभक्तों के मृत्यु से पूरा देश परेशान था अंत में गांधी के पास यह साहस नहीं था वह कांग्रेस का नेतृत्व कर पाएं और किसे अध्यक्ष बनाएं । इसी समय कांग्रेस का अध्यक्ष बनने के लिए करांची सम्मेलन में एकमात्र विकल्प सरदार वल्लभ भाई पटेल ही पूरे देश मे थे और यहां यह भी बताना समीचीन है कि जो मौलिक अधिकार और जिस स्वराज की बात गांधी करते हैं उस स्वराज का एजेंडा भी सरदार वल्लभ भाई पटेल द्वारा इसी 1931 के करांची कांग्रेस सम्मेलन में पटेल जी द्वारा ही बनाया गया था। यहां तक की 1945 से 1947 के कैबिनेट मिशन के प्लानर और योजनाकार और उसमें नीतिगत सुधार के विषय का श्रेय भी सरदार वल्लभभाई पटेल को ही जाता है।
आज केवडिया गुजरात मे उनका विश्व का सबसे ऊंचा स्मारक सरकार ने बनाया है,परन्तु आमजन को सरदार वल्लभ भाई पटेल की नीतियों की जानकारी अभी तक सर्वसुलभ नहीं है,आज देश के इतिहासकारों का नैतिक दायित्व बनता है कि इतिहास का नव सृजन कर देश की अखंडता एकता के प्रति उनके प्रबल पुरुषार्थ,और नीतिगत मसलों पर उनके विचारों का अवगाहन करने के लिये नई पीढ़ी को प्रेरित करें।
पटेल जी की केवल जयंती मनाकर इसे न पूरा किया जाए बल्कि जनाधिकार पर उनकी नीतियों को सरकार लागू करें।

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