कोर्ट ने 15 अप्रैल को अगली सुनवाई तय करते हुए अटार्नी जनरल आर. वेंकटरमणी और सालिसिटस जनरल तुषार मेहता से सुनवाई में मदद करने का आग्रह किया है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाई कोर्ट की टिप्पणियों पर रोक लगाने का मतलब है कि संबंधित केस में अभियुक्त न्यायिक कार्यवाही में लाभ पाने के लिए उनका उपयोग नहीं कर सकेंगे।
नाबालिग का वक्ष छूना दुष्कर्म नहीं: हाई कोर्ट
हाई कोर्ट ने आदेश में कहा था कि नाबालिग का वक्ष छूना और उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ना दुष्कर्म या दुष्कर्म का प्रयास नहीं है। यह महिला की गरिमा पर हमला का मामला तो बनता है लेकिन इसे दुष्कर्म का प्रयास नहीं कह सकते। हाई कोर्ट ने विशेष जज के सम्मन आदेश को संशोधित कर दिया था।
यह मामला न्यायाधीश की असंवेदनशीलता प्रदर्शित करता है: कोर्ट
कोर्ट में अटार्नी जनरल भी मौजूद थे। पीठ की अगुवाई कर रहे न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि यह बहुत गंभीर मामला है और यह पूरी तरह से न्यायाधीश की असंवेदनशीलता प्रदर्शित करता है। जस्टिस गवई ने कहा कि हमें न्यायाधीश के खिलाफ ऐसे कठोर शब्दों का प्रयोग करने के लिए खेद है। उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि हाई कोर्ट ने यह आदेश सुनवाई के दौरान तत्काल सुना दिया हो।
मामले में 13 नवंबर 2024 को फैसला सुरक्षित हुआ और करीब चार महीने बाद फैसला सुनाया गया। इससे स्पष्ट है कि फैसला लिखने वाले न्यायाधीश ने सोच समझ कर फैसला दिया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि सामान्य तौर पर वे इस स्तर पर रोक आदेश जारी नहीं करते लेकिन हाई कोर्ट के आदेश के पैराग्राफ 21, 24 और 26 में की गई टिप्पणियां कानून के सिद्धांतों से अनभिज्ञ हैं तथा असंवेदनशील और अमानवीय दृष्टिकोण को दर्शाती हैं इसलिए उन टिप्पणियों पर रोक लगाई जाती है।
जस्ट राइट्स फार चिलंड्रन संस्था ने अलग से दायर की याचिका
कोर्ट ने केंद्र सरकार, उत्तर प्रदेश और हाई कोर्ट में पक्षकार रहे आरोपितों को नोटिस भी जारी किया। उत्तर प्रदेश के एडीशनल एडवोकेट जनरल शरण देव सिंह ठाकुर ने प्रदेश सरकार की ओर से नोटिस स्वीकार किया। इस मामले में जस्ट राइट्स फार चिलंड्रन संस्था ने भी पीड़िता की ओर से पैरवी के लिए अलग से याचिका दाखिल की है। सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को भी मुख्य मामले के साथ सुनवाई के लिए संलग्न करने का आदेश दिया है।
सालिसिटर जनरल मेहता ने कहा कि हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश मास्टर आफ रोस्टर हैं उचित होता कि कुछ कदम उठाए जाते। पीठ ने सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि वह इस आदेश को तत्काल इलाहाबाद हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को भेजे जो तुरंत हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष पेश करेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से आग्रह किया है कि वह इस मामले को देखें और जैसा उचित हो कदम उठाएं।
