केंद्र की अग्निपथ योजना के खिलाफ सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई, जिसमें आरोप लगाया गया है कि सरकार ने सशस्त्र बलों के लिए वर्षों पुरानी चयन प्रक्रिया को रद्द कर दिया है, जो संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत है और इसके लिये संसद की मंजूरी भी नहीं ली गई है।
अग्निपथ योजना 14 जून को घोषित की गई थी, जिसमें साढ़े 17 साल से 21 साल के बीच के युवाओं को केवल चार वर्ष के लिए सेना में भर्ती करने का प्रावधान है। चार साल बाद इनमें से केवल 25 प्रतिशत युवाओं की सेवा नियमित करने का प्रावधान है। इस योजना के खिलाफ कई राज्यों में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। बाद में, सरकार ने 2022 में भर्ती के लिए ऊपरी आयु सीमा को इस साल के लिये बढ़ाकर 23 वर्ष कर दिया।
अधिवक्ता एम एल शर्मा द्वारा शीर्ष अदालत में दायर याचिका में 14 जून की अधिसूचना या प्रेस नोट को अवैध और असंवैधानिक बताते हुए रद्द करने की मांग की गई है। इसमें आरोप लगाया गया है कि 14 जून, 2022 को संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत और संसद की मंजूरी के बिना और बिना किसी गजट अधिसूचना के, केंद्र ने वर्षों पुरानी सेना की चयन प्रक्रिया के साथ छेड़छाड़ की और तीनों सशस्त्र बलों के डिवीजन में भर्ती के लिए योजना लागू कर दी।
याचिका में इस योजना के खिलाफ पूरे देश में विरोध प्रदर्शन का भी जिक्र किया गया है। पिछले सप्ताह शीर्ष अदालत में एक अलग याचिका दायर की गई थी, जिसमें केंद्र की अग्निपथ योजना के खिलाफ हिंसक विरोध प्रदर्शन से रेलवे सहित सार्वजनिक संपत्तियों को हुए नुकसान की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था।
याचिका में केंद्र और उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, बिहार, हरियाणा और राजस्थान सरकारों को हिंसक विरोध प्रदर्शनों पर एक स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था। इसमें योजना और राष्ट्रीय सुरक्षा एवं सेना पर इसके प्रभाव की जांच के लिए शीर्ष अदालत के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समिति गठित करने का निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया था।
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