अयोध्या की मिल्कीपुर सीट पर होने वाले उपचुनाव के लिए भाजपा ने भी मंगलवार को प्रत्याशी का ऐलान कर दिया। भाजपा ने यहां से चंद्रभान पासवान को मैदान में उतारा है। समाजवादी पार्टी पहले ही अयोध्या के सांसद अवधेश प्रसाद के बेटे अजीत प्रसाद को यहां से प्रत्याशी घोषित कर चुकी है। भाजपा और सपा दोनों के लिए मिल्कीपुर सीट प्रतिष्ठा का सवाल बनी हुई है। अवधेश प्रसाद की तरह चंद्रभान पासवान पासी समाज से आते हैं। यहां पर 17 जनवरी तक नामांकन होगा। 18 को नामांकन पत्रों की जांच और 20 जनवरी तक नाम वापस लिए जा सकेंगे। पांच फरवरी को वोटिंग और आठ फरवरी को रिजल्ट आएगा।

चंद्रभान रुदौली से दो बार जिला पंचायत सदस्य रहे हैं। अभी इनकी पत्नी जिला पंचायत सदस्य हैं। चंद्रभान पासवान का परिवार मुख्य रूप से सूरत की साड़ियों का व्यवसाय करता है। साड़ी के व्यापार में पूरा परिवार सक्रिय हैं। रुदौली में भी साड़ी का कारोबार करते हैं। पिछले 2 वर्षों से मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर सक्रिय थे। इससे पहले 2022 के चुनाव में भाजपा ने गोरखनाथ को यहां से उतारा था। इस बार भी गोरखनाथ समेत आधा दर्जन नेता प्रत्याशी बनने की दौड़ में शामिल थे।
लोकसभा चुनाव अयोध्या सीट सपा के हाथों हारने के बाद से भाजपा के लिए मिल्कीपुर सीट ज्यादा महत्वपूर्ण हो गई है। मिल्कीपुर से सपा विधायक रहे अवधेश प्रसाद के ही अयोध्या से सांसद चुने जाने के बाद यह सीट खाली हुई है। अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन के ठीक बाद हुए लोकसभा चुनाव में अवधेश प्रसाद की जीत ने भाजपा को बड़ा झटका दिया था। यही कारण है कि सपा ने अवधेश प्रसाद को पीडीए का आईकन पेश करने की पूरी कोशिश की। लोकसभा में भी अवधेश प्रसाद को अखिलेश यादव अपने साथ सबसे आगे बैठाते भी रहे हैं।
भाजपा के लिए क्या चुनौतियां
अयोध्या मेंं चौतरफा विकास के बाद भी लोकसभा सीट हारने से भाजपा के लिए यह सीट अहम हो गई है। भाजपा की कोशिश है कि मिल्कीपुर उपचुनाव जीतकर वह एक तरफ अयोध्या लोकसभा सीट हारने का बदला लेना चाहेगी, दूसरी तरफ यह बताने की कोशिश होगी कि सपा को लोकसभा चुनाव में मिली जीत केवल एक तुक्का थी। लोगों को संविधान के नाम पर बहकाकर सपा ने लोकसभा चुनाव में यूपी की सीटें जीती थीं। यह सीट भाजपा के लिए कितनी अहम है, इसी से समझा जा सकता है कि खुद सीएम योगी ने यहां की बागडोर अपने हाथों में ले रखी है। लगातार वह यहां के दौरे भी कर रहे हैं। हालांकि भाजपा के लिए यहां जीत हासिल करना इतना आसान भी नहीं है। इस सीट पर भाजपा लगातार हारती रही है। यहां तक कि पिछले दो विधानसभा चुनावों में भाजपा की लहर के बाद भी यहां भाजपा हार गई थी।
