महाकुंभ 2025 में बड़े-बड़े और मामलों में अनोखे संत पहुंचे हुए हैं। इन्‍हीं में से एक हैं जूना अखाड़े के कबूतर वाले बाबा। कबूतर वाले बाबा इस नाम से मशहूर इसलिए हैं क्‍योंकि वह पिछले कई वर्षों से अपने सिर पर कबूतर लेकर घूम रहे हैं। बाबा को देखकर महाकुंभ में आने वाले तीर्थयात्रियों की सहज ही उनके बारे में जानने की जिज्ञासा हो जाती है। लोग उनसे लौकिक और परालौकिक विषयों पर जानना चाहते हैं। ऐसे में कबूतर वाले बाबा के अपने जीवन का लक्ष्‍य भी सामने आया है। बाबा कहते हैं उनके लिए जीव सेवा ही सबसे बड़ी सेवा है और यही उनके जीवन का एक मात्र लक्ष्‍य भी है।

पीटीआई से हुई एक बातचीत में कबूतर वाले बाबा कहते हैं, ‘ जीव सेवा परमो धर्म है। जीवों के प्रति सेवा करनी चाहिए। एक ही हमारा लक्ष्‍य है। सब जीवों की सेवा करो। जीव से ही शिव है। गऊ, गोरू, नंदी तीन सेवा अटल है बाकी सब मिथ्‍या है। ये जितना है न…तुम कोई भी तंत्र साधना, कुछ भी करते हो, अगर गऊ, गोरू की सेवा करो तो सब साधना हो जाएगी।’

बाबा ने कहा, ‘जो गऊ की सेवा करता है न वो स्‍वयं बोले तो गऊ तन तर..तर होता है…अगर तंत्र-मंत्र जो भी है तो वो साधना सब सेवा हो जाती है। कोई चीज की परेशानी नहीं चलती। यदि आप हमेशा वैसे ही भटकते रहोगे तरह-तरह से कि यहां गए…वहां गए…सेवा कोई करता नहीं। सेवा करोगे तो कुछ मिलेगा। सेवा कोई करता नहीं। इसलिए हमारा तो ये लक्ष्‍य है कि जीव सेवा परमो धर्म। तुम जीवों की सेवा करो। और कोई लक्ष्‍य नहीं है हमारा। इसका तो खेल अलग है। हरी है।’

राजस्‍थान से हैं कबूतर वाले बाबा

कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कबूतर वाले बाबा राजस्‍थान के चित्‍तौड़गढ़ से हैं। बाबा को अक्‍सर जीव सेवा के प्रति उनकी शिक्षाओं का प्रचार करते हुए देखा जाता है। उनकी और वफादार कबूतर की एक झलक पाने के लिए लोगों की भीड़ जुट जाती है।

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