दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीते 2 बार से भाजपा का प्रदर्शन काफी खराब रहा है, लेकिन साल 1993 के पहले विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने जोरदार प्रदर्शन करते हुए जीत दर्ज की थी। उस वक्त बीजेपी ने 42.8 फीसदी वोट के साथ 49 सीटों को अपने नाम किया था। मगर जीत दर्ज करने के बावजूद इस कार्यकाल में भाजपा को तीन बार सीएम बदलना पड़ा। जानिए आखिर क्या वजहें थी कि बीजेपी को ऐसा कदम उठाना पड़ा।

इस चुनाव में बीजेपी ने जोरदार जीत दर्ज की थी। भाजपा ने 42.82 फीसदी वोट के साथ 49 सीटें प्राप्त की थी। कांग्रेस ने भाजपा को कड़ी टक्कर देते हुए 34.48 फीसदी वोटों के साथ 14 सीटें जीती थीं। वहीं जनता दल तीसरे पायदान पर रही थी, उसने 12.65 फीसदी वोट के साथ 4 सीटें जीती थीं। बाकी बची हुई 3 सीटें इंडिपेंडेंस पार्टी के खाते में गई थीं।

सबसे ज्यादा वोट शेयर के साथ 49 सीटें जीतने वाली बीजेपी ने मदन लाल खुराना को अपना सीएम बनाया था। खुराना जनता के बीच ‘दिल्ली का शेर’ नाम से जाने जाते थे। हालांकि इस दौरान मदन लाल खुराना ने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया। बीजेपी ने बदलती परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए तीन बार सीएम चेहरा बदला ताकि जनता के गुस्से को काबू में किया जा सके। मगर इसका कोई फायदा नहीं हुआ, क्योंकि अगले चुनाव में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था।

जनता ने इस कार्यकाल में तीन सीएम देखे। इसमें मदन लाल खुराना, साहिब सिंह वर्मा और सुषमा स्वराज शामिल थीं। इस बदलाव के पीछे की वजह बढ़ती महंगाई और भ्रष्टाचार के आरोप थे। 1996 में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार को ‘जैन हवाला’ कांड के आरोपों से गुजरना पड़ा था। इस दौरान मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना और भाजपा अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी के खिलाफ भ्रष्टाचार के बड़े आरोप लगे। इन आरोपों के चलते पार्टी संकट से गुजर रही थी। इसलिए खुराना ने सीएम पद से इस्तीफा दिया और साहिब सिंह वर्मा को मुख्यमंत्री बनाया गया।

इस बदलाव के बावजूद साहिब सिंह वर्मा आगे का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए। उनका कार्यकाल भी अल्पकालिक ही रहा, क्योंकि उस समय सरकार बढ़ती महंगाई को काबू करने में नाकामयाब रही थी। इस कारण लगातार संघर्ष जारी थे। जनता के बीच 1998 के चुनावों से पहले ही असंतोष पैदा होता हुआ दिखाई दिया तो बीजेपी ने एक बार फिर सीएम बदल दिया। पार्टी ने छवि को सुधारने और जनता के विरोध को कम करने के लिए सुषमा स्वराज को सीएम बनाया। मगर तब तक पांच साल का कार्यकाल खत्म होने वाला था और 1998 के चुनाव होने वाले थे।

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