झांसी! किडनी ट्रांसप्लांट एक सर्जरी होती है जिसमें शरीर के अंदर मौजूद खराब किडनी को निकालकर उसकी जगह डोनर से ली गई स्वस्थ किडनी लगाई जाती है. ये किडनी किसी मृत व्यक्ति या किसी जीवित दोनों तरह के डोनर से ली जा सकती है. परिवार का कोई सदस्य या अन्य कोई, जिसका मैच मिल जाए वो अपनी एक किडनी डोनेट कर सकता है. इस तरह का ट्रांसप्लांट लिविंग ट्रांसप्लांट कहलाता है. किडनी ट्रांसप्लांटेशन के बाद आमतौर पर मरीज के लिए रिजल्ट अच्छे आते हैं, 1 साल के सर्वाइवल रेट 93 से 98 फीसदी होते हैं और 5 साल का सर्वाइवल रेट 83 से 93 फीसदी रहता है लिविंग डोनर वो व्यक्ति जो ट्रांसप्लांटेशन के लिएअंग डोनेट करता है वो लिविंग डोनर कहलाता है. मृत डोनर ब्रेन या दिल की बीमारी से मौत के बाद जिस व्यक्ति से कम से कम एक सॉलिड अंग ट्रांसप्लांटेशन के लिए लिया जाता है, वो डिसीज्ड डोनर या मृत डोनर कहलाता है.एक्सपेंडेड क्राइटेरिया डोनर (ईसीडी)*: वो मृत डोनर जिसकी उम्र 60 से ज्यादा होती है, वो ईसीडी कैटेगरी में आता है किडनी ट्रांसप्लांट क्यों किया जाता है क्रोनिक किडनी डिजीज या एंड स्टेज किडनी डिजीज यानी किडनी फेल्योर से जूझ रहे मरीजों को ठीक करने के मकसद से किडनी ट्रांसप्लांट किया जाता है. जब व्यक्ति की किडनी शरीर के वेस्ट को ठीक से फिल्टर नहीं कर पाती, तब डायलिसिस यानी मशीन के जरिए खून की सफाई या किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है.
किडनी ट्रांसप्लांट में क्या जरूरत होती है किडनी ट्रांसप्लांट के मामले में हर हॉस्पिटल का मरीज के हिसाब से अपना क्राइटेरिया होता है. लेकिन आमतौर पर उस मरीज का किडनी ट्रांसप्लांट किया जाता है, जिसकी बीमारी एंड स्टेज में हो और वो डायलिसिस पर चल रहा हो. लेट स्टेज क्रोनिक किडनी डिजीज हो और डायलिसिस का विकल्प तलाश रहा हो. मरीज के जीने की संभावना कम से कम पांच साल हो और मरीज को ट्रांसप्लांटेशन के बाद के सभी निर्देशों व केयर की जानकारी हो.
