लोकसभा चुनाव 2024 में लगभग एक साल का समय बाकी है, लेकिन एकता की कोशिशों में जुटा विपक्ष एक होने के लिए तैयार है या नहीं, यह अब तक साफ नहीं है। फिलहाल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक साझा उम्मीदवार तैयार करने को लेकर चर्चाएं जारी हैं।

खबरें हैं कि कई बड़े क्षेत्रीय दल अपने गढ़ों से कांग्रेस को दूर रखना चाहते हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जैसे नेता खुलकर इस शर्त को सामने भी रख चुके हैं, लेकिन इससे मानना कांग्रेस के लिए भी आसान नहीं होगा।

क्षेत्रीय दलों का तर्क समझें
पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ दल तृणमूल कांग्रेस चाहती है कि कांग्रेस केवल उन सीटों पर ही उम्मीदवार उतारे, जहां वे जीत सकते हैं। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव को भी लगता है कि कांग्रेस सिर्फ वोट खराब करेगा और अच्छा होगा कि वह इससे बाहर ही रहे। खास बात है कि सीएम बनर्जी और कांग्रेस के बीच रिश्ते बनते बिगड़ते रहे हैं। इधर, कर्नाटक के शपथ ग्रहण समारोह में बुलाए जाने पर भी अखिलेश ने दूरी बना ली थी।

12 जून को बिहार की राजधानी पटना में विपक्षी दलों की बड़ी बैठक होने जा रही है। इसी बीच साझा उम्मीदवार को लेकर चर्चाएं तेज हो रही हैं। खबर है कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और नेता राहुल गांधी से मिलकर कुमार ने साथ मिलकर एक के खिलाफ खड़े होने की बात पर जोर दिया है। सीएम बनर्जी भी कांग्रेस की कर्नाटक जीत के बाद विपक्षी उम्मीदवार की बात कह चुकी हैं।

हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब इस तरह के सियासी प्रस्ताव सामने आए हैं। 2019 में भी इस तरह की कोशिशें असफल हो चुकी हैं। अब कहा जा रहा है कि सबसे बड़ी चुनौती सीट बंटवारा होगा, जिसपर सभी की मंजूरी जरूरी है। खास बात है कि बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु से बड़ी संख्या में सांसद चुने जाते हैं।

कांग्रेस के सामने क्या हैं चुनौतियां
हाल ही में पत्रकारों से बातचीत में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने कहा, ‘हम कम से कम 450 सीटों पर एक विपक्षी उम्मीदवार के प्रस्ताव पर विचार कर रहे हैं। फिलहाल, इसपर चर्चाएं जारी हैं।’ कहा जा रहा है कि कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती प्रदेश इकाइयां ही पेश करेंगी। इसका ताजा उदाहरण दिल्ली अध्यादेश मामले में नजर आया, जहां पंजाब और दिल्ली कमेटी मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के समर्थन के खिलाफ खड़ी हो गईं।

हालांकि, केजरीवाल के खिलाफ यह सुर प्रदेश ही नहीं बल्कि अजय माकन और संदीप दीक्षित जैसे बड़े नेता भी उठा चुके हैं। फिर चुनौती 2023 में होने वाले तेलंगाना विधानसभा चुनाव हैं। अब भारत राष्ट्र समिति (पहले तेलंगाना राष्ट्र समिति) और कांग्रेस की खास बनती नजर नहीं आई। सीएम के चंद्रशेखर राव की पार्टी कई मौकों पर राहुल गांधी पर तंज कसती नजर आई। ऐसे में कांग्रेस को इन दलों के साथ संतुलन भी बनाना होगा।

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