अगर आप घंटों मोबाइल चलाते रहते हैं और रील्स देखते हुए लगातार स्क्रॉलिंग की आदत है और बार-बार एप्स बदलकर देखते रहते हैं तो ये आपकी सेहत के लिहाज से खतरे की घंटी है। मोबाइल पर घंटों गुजारने वाले युवा पॉपकॉर्न ब्रेन सिंड्रोम का शिकार हो रहे हैं। जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के मनोरोग विभाग के प्रोफेसर एंड हेड डॉ. कुमार गौरव बताते हैं कि इन दिनों ओपीडी में पॉपकॉर्न मोबाइल सिंड्रोम के मरीज मिल रहे हैं।

इस साल जनवरी 2025 से लेकर अबतक (अक्तूबर 2025 तक) पॉपकॉर्न ब्रेन सिंड्रोम के 113 मरीज इलाज के लिए आ चुके हैं। इनमें से ज्यादातर युवा होते हैं, जिनकी उम्र 25 से 45 साल के बीच होती है। ऐसे मरीजों में पॉपकॉर्न ब्रेन सिंड्रोम के लक्षण मिले तो सबसे पहले उन्हें डिजिटल उपवास यानी मोबाइल पर कम-से-कम वक्त गुजारने और सप्ताह में दो दिन बिना मोबाइल के गुजारने की सलाह दी गई।

सदर अस्पताल के मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. पंकज कुमार मनस्वी बताते हैं कि मोबाइल पर लगातार बदलती जानकारी और तेज रफ्तार कंटेंट से दिमाग एक जगह टिक नहीं पाता और विचार पॉपकॉर्न की तरह फूटने लगते हैं, इससे मानसिक थकान, एकाग्रता की कमी होती है। इसे ही पॉपकॉर्न ब्रेन सिंड्रोम कहते हैं। स्थिति गंभीर होने पर व्यक्ति ब्रेन फॉग का शिकार हो सकता है। इसमें ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई, भ्रम, याददाश्त की समस्या (चीजें भूल जाना), मानसिक थकान, और धीमे या अस्पष्ट विचार शामिल हैं।

इसके अलावा व्यक्ति को निर्णय लेने में परेशानी, चिड़चिड़ापन और मानसिक रूप से भारीपन या सुस्त महसूस हो सकता है। बकौल डॉ. मनस्वी, ये समस्या बिगड़ी जीवनशैली व आदतों की देन है। मोबाइल उपयोग को सीमित करना यानी डिजिटल डिटॉक्स और दिमाग को आराम देने के लिए योग करना जरूरी है। यदि व्यक्ति को भूलने की समस्या है तो मनोचिकित्सक से मिलकर सलाह लेनी चाहिए।

लगातार रील्स या पोस्ट को स्क्रॉल करने वालों में पॉपकॉर्न ब्रेन सिंड्रोम मिल रहा है। अगर किसी काम को करने में मन न लगे तो चिकित्सक से मिलकर सलाह ले लेनी चाहिए।
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