समाज सेवी तिरंगा महाराज पर हमला, गिरफ्तारी जेल प्रशासनिक पक्षपात प्रशासनिक निष्पक्षता और पारदर्शिता प्रशासन की निष्पक्षता पर सवाल किसानों की पट्टा पत्रावलियों को गायब करने वाले दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही के बजाय तिरंगा महाराज को क्यों बनाया जा रहा निशाना

किसानों के आंदोलन को कुचलने के लिए किसानों का नेतृत्व कर रहे तिरंगा महाराज को पुलिस ने भेजा जेल किसानों धरना प्रदर्शन खत्म कर भगाया

बीकेटी, लखनऊ।
बीकेटी तहसील के ग्राम पंचायत राजापुर सुल्तानपुर बहादुरपुर गांव के किसानों की गायब पट्टा पत्रावलियों के मुद्दे पर आवाज उठा रहे तिरंगा महाराज पर जानलेवा हमला होना उनका मोबाइल फोन छीनने और पुलिस द्वारा पीड़ित को गिरफ्तार कर जेल भेजना अपने आप में प्रशासन की विफलता को दर्शा रहा है
गोमती नदी पर कब्जा किसानों की तहसील से गायब पत्रावली निलांश वाटर पार्क विवाद और तिरंगा महाराज की गिरफ्तारी ने प्रशासनिक निष्पक्षता और पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। 25 नवंबर को निलांश वाटर पार्क की पैमाइश के दौरान मलिहाबाद के लेखपाल तुषार द्वारा तिरंगा महाराज पर हमला करने मोबाइल फोन छीनने का आरोप है। चश्मदीदों के अनुसार, यह हमला अधिकारियों के आदेश पर सुनियोजित था। हैरानी की बात यह है कि एक महीना बीत जाने के बाद भी इस मामले में एफआईआर दर्ज नहीं की गई, जिससे प्रशासन की नीयत पर शंका गहरा गई है। घटना के बाद तिरंगा महाराज ने न्याय की मांग करते हुए आंदोलन का रास्ता चुना।
किसानों के आंदोलन को कुचलने के लिए पुलिस प्रशासन एक्टिव हो गया और उन्होंने पूरी ताकत से किसानों को धमका कर खदेड़ा
किसानो ने आरोप लगाते हुए कहा तिरंगा महाराज जब वह 25 दिसंबर को धरने के लिए मलिहाबाद जा रहे थे, तब इटौंजा थाने के दरोगा धीरेंद्र राय ने उन्हें कथित तौर पर गाली-गलौज करते हुए गोमती नदी में धक्का दिया और जल समाधि देने की धमकी दी।

जिससे किसान क्रोधित हो गए और वही धरने पर बैठ कर प्रदर्शन करने लगे शाम को धरना स्थल पर पुलिस ने कई महिलाओं को धमका कर तिरंगा महाराज को जबरन गिरफ्तार कर लिया और अगले दिन आनन फानन में जेल भेज दिया किसानों और पुलिस की झड़प में कई बुजुर्ग महिला किसानों को चोट आई है
तिरंगा महाराज 27 दिसंबर को न्यायालय से जमानत मिलने के बावजूद प्रशासनिक प्रक्रियाओं के कारण वे 28 दिसंबर को रिहा हो सके। महाराज और उनके समर्थकों की तीन प्रमुख मांगें थीं—गोमती नदी की जमीन पर अवैध कब्जा मुक्त किया जाए, 25 नवंबर को लेखपाल द्वारा किए गए हमले की एफआईआर और गायब किसानों की पत्रावलियों में दोषियों के खिलाफ कार्रवाई। लेकिन प्रशासन ने इन मांगों पर ध्यान देने के बजाय तिरंगा महाराज को निशाना बनाया। , जिससे जनता में गहरी नाराजगी है।
यह घटना न केवल प्रशासन की निष्पक्षता पर सवाल खड़े करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि सत्ता से जुड़े लोगों ने भी इस मामले में आंखें मूंद ली हैं। रिहाई के बाद तिरंगा महाराज ने कहा, यह केवल मेरी नहीं, बल्कि जनता की लड़ाई है। भ्रष्टाचार और प्रशासनिक खामियों के खिलाफ आवाज उठाना मेरा कर्तव्य है।

मेरी गिरफ्तारी इस संघर्ष को रोकने की साजिश थी, लेकिन मैं पीछे नहीं हटूंगा। स्थानीय लोग और तिरंगा महाराज के समर्थक लगातार आवाज उठा रहे हैं । किसानो ने इस प्रशासनिक भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा उदाहरण बताते हुए दोषियों पर सख्त कार्रवाई की मांग की। उनका कहना है कि जब तक तिरंगा महाराज को न्याय नहीं मिलता, आंदोलन जारी रहेगा। यह घटना केवल एक व्यक्ति के खिलाफ साजिश नहीं, बल्कि पूरे प्रशासनिक तंत्र की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर सवाल खड़े करती है। अब यह देखना अहम होगा कि प्रशासन न्याय करता है या भ्रष्टाचार और आंदोलन को कुचलने के लिए अपने रुख पर कायम रहता है।
इस तरह से घटनाओं से सरकार की कार्यशैली पर भी बड़े सवाल उठ रहे हैं कि आखिर जब इतने लंबे और संवेदनशील मुद्दे हैं तो सरकार और उनके जनप्रतिनिधि क्यों इस तरफ ठोस कदम नहीं उठा रहे हैं अब देखने वाली बात होगी क्या सीएम योगी तक यह सूचना पहुंचती है और वह कोई ठोस कार्रवाई करते हैं

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