बिहार के पूर्णिया जिले की रूपौली विधानसभा सीट पर हाल ही में हुए उपचुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार शंकर सिंह ने जीत दर्ज की है। उन्होंने राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी जेडीयू के कलाधर मंडल को 8246 मतों से हराया। शंकर सिंह को 68070 मत हासिल हुए जबकि जेडीयू के कलाधर प्रसाद मंडल को 59824 मत प्राप्त हुए । राजद उम्मीदवार बीमा भारती तीसरे नंबर पर रहीं। उन्हें कुल 30619 वोट प्राप्त हुए। यानी उनकी हार करीब 37000 वोटों के अंतर से हुई है। शंकर सिंह जहां राजपूत समुदाय से आते हैं, वहीं मंडल और भारती अत्यंत पिछड़ा समुदाय (EBC) के गंगौता जाति से ताल्लुक रखते हैं।

बड़ी बात यह है कि बीमा भारती इसी सीट से पांच बार विधायक रह चुकी हैं लेकिन इस बार वह अपनी ही परंपरागत सीट से चुनाव हार गईं। इसकी बड़ी वजह ईबीसी वोटरों की नाराजगी बताई जा रही है। दो महीने पहले भी उन्हें पूर्णिया लोकसभा सीट पर हुए आम चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। तब उन्हें पप्पू यादव ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर हराया था। रुपौली उसी पूर्णिया लोकसभा सीट के तहत आता है। उस समय भी ईबीसी वोटरों ने खुद को राजद से दूर ही रखा।

इस विधानसभा क्षेत्र में 25 फीसदी आबादी EBC कैटगरी की है, जबकि राजपूतों की आबादी सिर्फ 7 फीसदी है। बावजूद इसके राजपूत जाति से आने वाले शंकर सिंह ने जीत दर्ज की। इससे साफ जाहिर होता है कि ईबीसी समुदाय ने अपनी ही कैटगरी से आने वाली बीमा भारती को वोट नहीं दिया। हालांकि, 2020 के विधान सभा चुनाव में उसी बीमा भारती ने जेडीयू के टिकट पर तीसरी बार और वैसे पांचवीं जीत दर्ज की थी और लोकसभा चुनावों से ऐन पहले जेडीयू छोड़कर राजद का दामन थाम लिया था।

उधर, तेजस्वी यादव को भरोसा था कि विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के सर्वेसर्वा मुकेश साहनी को साथ लेकर उड़नखटोला से उड़ने और चुनावी रैलियों को संबोधित करने से मल्लाहों समेत अन्य ईबीसी समुदाय के मतदाता लालटेन को वोट देंगे लेकिन मल्लाहों के अलावा किसी और जाति का वोट ट्रांसफर करा पाने में मुकेश साहनी नाकाम रहे हैं। रुपौली उप चुनाव में भी मल्लाह और गंगौता के अलावा किसी और ईबीसी जाति के वोट बैंक का बड़ा हिस्सा राजद को नहीं मिल सका है।

दो महीने के अंतराल में ऐसा दूसरी बार हुआ है, जब ईबीसी समुदाय ने राजद से मुंह मोड़ लिया है और राजद को वहां अपमानजनक तरीके से हार का सामना करना पड़ा है। पहली बार निर्दलीय पप्पू यादव की वजह से तो दूसरी बार भी निर्दलीय की वजह से राजद को हार का समान करना पड़ा है। हालांकि, दोनों चुनावों में जेडीयू के उम्मीदवारों की भी हार हुई है लेकिन राजद की हार ज्यादा अपमानजनक है क्योंकि वोटों का अंतर बहुत ज्यादा है।

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