
2019-05-15 04:07:10
लिख रहा हूँ आाज ,
बेटी का दर्द सुनाने को |
नन्हीं सी कलियाँ का,
जीवन बचाने को || १||
जन जन तक बेटी का,
दर्द पहुँचाहुँगा |
लोगों को उसकी पीडा का ,
हाल बताऊँगा ||२||
देख उसकी पीडा को,
ह्रदय भर आता है |
माँ बाप जन्म
2016-10-31 05:50:36
जी हाँ आप बायें मुड़ सकते हैं । और इतना ही नहीँ आप दायें ,बायें अथवा यू टर्न ले सकते हैं । ऐसा अक्सर सड़कों पर बोर्ड लगा दिख जायेगा । ये तो रही सड़कों की बात लेकिन ऐसा हम सब अपनी -अपनी जिंदगियों में तब कर सकते हैं...जब थूक
2016-06-23 04:25:31
-अजय कुमार श्रीवास्तव
विराट खण्ड गोमती नगर, लखनऊ
बात 1986 की है मैं उस समय हाईस्कूल का छात्र हुआ करता था। मेरी दोस्ती हुई राजीव मिश्रा नाम के एक सहपाठी के साथ। प्यार से उन्हें लोग टिल्लू भाई पुकारा करते थे। टिल्लू के
2016-06-02 05:10:28
शशि पाण्डेय,नई दिल्ली
अनु माँ जी से लिपट कर रोती हुई अपने हर उस पल को करती जब वो सपनो का संसार लिए कभी इस घर की दहलीज़ पर आई थी...कैसे जिंदगी जरुरतो के साथ बदलती है अभी -अभी तो रचित और अनु परिणय सूत्र में बंधे थे उन द
2016-05-17 00:32:41
बसा लो मुझको
पुष्प वृक्ष में ज्यौं नव पुंज खिला हो,
पुलकित हो उठे त्यौं मेरे तन के उर में।
रखो सदा मुझको तुम भी अपने तन के उर में,
इस तरह ज्यौं मोती घिरा हुआ हो सीप में।
समेट मुझको
2016-04-27 09:02:41
शशि पाण्डेय, दिल्ली
कल मैने बहुत पटाखे फोडे पर बिना किसी प्रदूषण के,बहुत सारी मिठाइयाँ खायी पर वजन बिलकुल नहीं बढाया।वैसे प्रदूषण मुक्ति व मोटापे से मुक्ति के लिए ये अच्छा विकल्प है। क्या आपको मालुम है कैसे????इसका
2016-04-20 09:34:44
शशि पाण्डेय,नई दिल्ली
थोड़ा विशेष सम्प्रदाय का विरोध ,थोड़ा विशेष समुदाय को सर आँखों पर नवाज़ना ,बस यूँ ही तो आधुनिक बुद्धजीवी बनते हैं । आज सही को सही,गलत को गलत कहना......वही तक सही है जहाँ से बुद्धिजीवी होने के मायने ब
2016-04-16 03:31:00
शशि पाण्डेय,नई दिल्ली
"चलो दिलदार चलो चांद के पार चलो"। अब मुझे समझ आया इस गाने को रचने वाले गीतकर को वैज्ञानिकों के रिसर्च के पहले ही भान हो गया था कि धरती से दिखने वाले चमकीले चांद पर पानी है।तभी उसने ये लाइनें गढी थ
2016-04-13 05:15:17
शशि पाण्डेय,नई दिल्ली
मेरा मन कभी भी बिन सच्चाई बतंगड़ नहीं बनाता हालांकि बतंगड़ हमेशा बिन सिर-पैर की बातों का होता है अब मेरा मन मेरे जल्दबाज़ रवैये पर अटका है और हो भी क्यों न!! सच कभी-कभी मेरा मन दो मिनट में बनने व
2016-04-12 00:13:20
याददाश्त खा गई सभी की
खत्म हो गई हाथ घड़ी।
कैलकुलेटर खैर मनाए
आई उसकी भी अन्त घड़ी।।
चिट्ठी लिखते माँ भइया को
पर 'मैसेज' की अब लगी झड़ी।
ह्वाट्स ऐप ने हद ही कर दी
हो गई सबकी खाट खड़ी।।
आधी रात
2016-04-05 06:29:55
संसार के जिन महाकाव्यों को सार्वत्रिकता, सार्वकालिकता और गौरव प्राप्त है उनमें रामायण का विशिष्ट स्थान है। ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार ईसा की प्रारंभिक शताब्दियों से ही एशिया के विभिन्न देशों में रामायण का प्रचा
2016-04-05 06:29:00
हिमालय सदा चितकों, साधकों के लिए आकर्षण का केन्द्र रहा है। अनेक ऋषि मुनि पुरातन समय में हिमालय की शरण में आए। साहित्यकारों, कलाकारों ने भी समय समय पर हिमालय में जाकर रचनाकर्म किया। हिमालय में स्विटरजरलैंड के समान है क